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महावीर : सिद्धान्त और उपदेश : ११२
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संबुज्झह किं न बुज्झह, संबोही खलु पेच्च दुलहा । नो ह्रवणमंति राइओ, नो सुलभं पुणरावि जीवियं ॥
- सूत्रकृतांग
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जे आया से विन्नाया जे विन्नाया से आया । जेण बिजाणाइ से
आया ||
तं पडुच्च परिसंखाए ।
- आचारांग
कि मे कडं, किं च मे किंच्चसेसं । किं सक्कणिज्जं न समायरामि || - दशवं चलिका
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अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुपट्ठअ सुप्पट्ठिओ ॥
-उत्तराध्ययन
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पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्भ, एवं दुक्खा पमुच्चसि । -- आचारांग
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