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महावीर के सिद्धान्त : १०५
कर्म - बन्धन से मुक्ति का उपाय :
० कर्म - बन्धन से रहित होने का नाम मुक्ति है। जैन - धर्म की मान्यता है कि--जब आत्मा राग-द्वेष के बन्धन से छुटकारा पा लेता है, आगे के लिए कोई नया कर्म बांधता नहीं है, और पुराने बँधे हुए कर्मों को भोग लेता है या धर्म-साधना के द्वारा पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है, तो फिर सदा काल के लिए मुक्त हो जाता है। जब तक कर्म और कर्म के कारण रागद्वेष से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक आत्मा किसी भी दशा में मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता।
० अब प्रश्न केवल यह रह जाता है कि कर्म - बन्धन से मुक्ति पाने के क्या साधन हैं, क्या उपाय हैं ? जैनधर्म इस प्रश्न का बहुत सुन्दर उत्तर देता है। वह कहता है कि आत्मा ही बाँधने वाला है और वही उसे तोड़ने वाला भी है। कर्मों से मुक्ति पाने के लिए वह बाहर में किसी देव या ईश्वर आदि के सामने गिड़गिड़ाने अथवा नदी, नालों और पहाड़ों पर तीर्थयात्रा के रूप में भटकने के लिए कभी प्रेरणा नहीं देता। वह मुक्ति का साधन अपनी आत्मा में ही तलाश करता है । जैन - तीर्थकरों ने मोक्ष - प्राप्ति के तीन साधन माने हैं :---
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