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१०० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेण
"यह तो सुनिश्चित है कि कर्मवाद का प्रभाव मनुष्य जीवन पर बेहद पड़ा है। यदि किसी मनुष्य को यह मालूम हो जाए, कि वर्तमान अपराध के सिवा भी मुझ को जो कुछ भोगना पड़ता है, वह मेरे पूर्वकृत कर्म का ही फल है, तो वह पुराने कर्ज को चुकानें वाले मनुष्य की तरह शान्तभाव से प्राप्त कष्ट को सहन कर लेगा । और, यदि वह मनुष्य इतना भी जानता हो कि सहनशीलता से पुराना कर्ज चुकाया जा सकता है, तथा उसी से भविष्य के लिए समृद्धि भी एकत्र जा सकती है, तो उस को भलाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा स्वतः मिल जाएगी । अच्छा या बुरा कोई भी कर्म नष्ट नहीं होता । यह नीतिशास्त्र का मत और पदार्थशास्त्र का बलसंरक्षणसम्बन्धी मत समान ही है । दोनों मतों का आशय इतना ही है कि किसी का नाश नहीं होता । किसी भी नीतिशिक्षा के अस्तित्व के सम्बन्ध में कितनी ही शंका क्यों न हो, पर यह निर्विवाद सिद्ध है कि कर्मसिद्धान्त सबसे अधिक जगह माना गया है। उससे लाखों मनुष्यों के कष्ट कम हुए हैं और मनुष्यों को वर्तमान संकट झेलने की शक्ति पैदा करने तथा भावी जीवन को सुधारने की दिशा में भी प्रोत्साहन और आत्मिक बल मिलता है ।".
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