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महावीर के सिन्हान्त र
लगा कर यदि कोई आम के फल चाहे, तो कैसे मिलेंगे ? मैं वाहर के लोगों को व्यर्थ ही दोष देता है। उनका क्या दोष है ? वे तो मेरे अपने कर्मों के अनसार ही इस दशा में परिणत हुए हैं। यदि मेरे कर्म अच्छे होते, तो वे भी अच्छे न हो जाते ? जल एक ही है, वह तम्बाक के खेत में कड़वा बन जाता है, तो ईख के खेत में वही मीठा भी हो जाता है। जल अपने आप में अच्छा - बुरा नहीं है। अच्छा बुरा है---ईख और तम्बाकू । यही बात मेरे संगी - साथियों के सम्बन्ध में भी है । यदि मैं अच्छा हूँ, तो सब अच्छे हैं, और मैं बुरा हूँ, तो सब बुरे हैं। ० मनुष्य को किसी भी काम की सफलता के लिए मानसिक शान्ति की बड़ी आवश्यकता है और वह उसको कर्म - सिद्धान्त से ही मिल सकती है। आँधी और तुफान में जैसे हिमाचल अटल और अडिग रहता है, वैसे ही कर्मवादी मनुष्य भी अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों में शान्त एवं स्थिर रह कर अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बना कता है। अतएव कर्मवाद का सिद्धान्त मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में बड़ा उपयोगी प्रमाणित होता है ।।
० कर्म सिद्धान्त की उपयोगिता और श्रेष्ठता के सम्बन्ध में डॉ० मैक्समूलर के विचार बहुत ही सुन्दर और विचारणीय हैं । उन्होंने लिखा है
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