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महावार के सिद्धान्त • y.
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सिद्धान्त आलोचकों की परीक्षाग्नि में पड़ कर और भी अधिक उज्ज्वल एवं समुज्ज्वल बना है। सभी आक्षेपों को यहाँ वतलाने के लिए अवकाश नहीं है, तथापि मुख्य - मुख्य आक्षेप जान लेने आवश्यक हैं। जरा ध्यान से पढ़िए
१. प्रत्येक आत्मा अच्छे कर्म के साथ बुरे कर्म भी करता है, परन्तु बुरे कर्म का फल कोई नहीं चाहता है। चोर चोरी करता है, पर वह यह कब चाहता है कि मैं पकड़ा जाऊँ ? दूसरी बात यह है कि कर्म स्वयं जड़ - रूप होने से वह किसी भी ईश्वरीय चेतना की प्रेरणा के बिना फल प्रदान में असमर्थ भी है । अतएव कर्मवादियों को मानना चाहिए कि ईश्वर प्राणियों को कर्मफल देता है।
२. कर्मवाद का यह सिद्धान्त ठीक नहीं है कि कर्म से छट कर सभी जीव मुक्त अर्थात् ईश्वर हो जाते हैं। यह मान्यता तो ईश्वर और जीव में कोई अन्तर ही नहीं रहने देती, जो कि अतीव आवश्यक है। ० जैन - दर्शन ने उक्त आक्षेपों का सुन्दर तथा युक्तियुक्त समाधान किया है। जैन - दर्शन का कर्मवाद तर्कों के यथार्थ सुदृढ़ धरातल पर स्थित है। अतः वह आधारहीन आलोचनाओं से, धराशायी नहीं हो सकता। पूर्वोक्त किए गए आक्षेपों के निराकरण की उसकी समाधान पद्धति द्रष्टव्य है।
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