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१२ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
पर विना निश्चित काल का परिपाक हुए आम यों ही असमय में जल्दी थोड़े ही तैयार हो जाएगा ? काल की मर्यादा पूरी होने पर भी यदि शुभ - कर्म अनुकूल नहीं है, तो फिर भी आम नहीं लगने का। कभी-कभी किनारे आया हुआ जहाज भी डूब जाता है। अब रही, नियति । वह तो सब कुछ है ही। आम से आम होना विश्व प्रकृति का निश्चित नियम है, इससे कौन इन्कार कर सकता है ? विश्व जगत् में जो भी घटना घटित होती है, वह नियति के अधीन ही होती है, स्वतन्त्र नहीं। ० पढ़ने वाले विद्यार्थी के लिए भी पाँचों कारण आवश्यक हैं। पढ़ने के लिए चित्त की एकाग्रतारूप स्वभाव हो, समय का योग भी दिया जाए, पुरुषार्थ यानी प्रयत्न भी किया जाए, अशुभ कर्म का क्षय तथा शुभ-कर्म का उदय भी हो और नियति का योगदान भी साथ हो, तभी वह पढ़ - लिखकर विद्वान् हो सकता है। अनेकान्तवाद के द्वारा किया जाने वाला यह समन्वय ही . वस्तुतः जनता को सम्यक प्रकाश दिखलाता है।
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