________________
महावीर के सिद्धान्त : ११
भगवान महावीर ने उक्त एकान्तवादों के संघर्ष की समस्या को बड़ी अच्छी तरह सुलझाया है। संसार के सामने भगवान् महावीर ने समन्वय की वह बात रखी है, जो पूर्णतया सत्य पर आधारित है। समन्वयवाद: ० भगवान् महावीर का कहना है कि पांचों ही वाद अपने - अपने स्थान पर ठीक है। संसार में जो भी. कार्य होता है, वह पाँचों के समवाय से अर्थात मेल से ही होता है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि एक ही वाद अपने बल पर कार्य सिद्ध कर दे। बुद्धिमान मनुष्य को आग्रह छोड़कर सब का समन्वय करना चाहिए। बिना समन्वय किए कार्य में सफलता की आशा रखना दुराशा मात्र है। यह हो सकता है कि किसी कार्य में कोई एक कारण प्रधान हो और दूसरे सब गौण हों। परन्तु, यह नहीं हो सकता कि कोई एक कारण ही स्वतन्त्र रूप से कार्य सिद्ध कर दे। ० भगवान् महावीर का उपदेश पूर्णतया सत्य है। हम इसे समझने के लिए आम बोने वाले माली का उदाहरण ले सकते हैं। माली बाग में आम की गुठली बोता है, यहाँ पाँचों कारणों के समन्वय से ही वक्ष होगा। आम की सुठली में आम पैदा करने का स्वभाव है, परन्तु बोने का और बो कर रक्षा करने का पुरुषार्थ न हो, तो क्या होगा ? बोने का पुरुषार्थ भी कर लिया
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org