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१० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
नियतिवाद :
यह दर्शन जरा गम्भीर है। जड़ - चेतन - रूप विश्व जगत के अटल नियमों को नियति कहते हैं। नियतिवाद का कहना है कि- संसार में जितने भी । कार्य होते हैं, सब नियति के अधीन ही होते हैं। सूर्य पूर्व ही में उदय होता है, पश्चिम में क्यों नहीं ? कमल जल में ही उत्पन्न हो सकता है, शिला पर क्यों नहीं ? पक्षी आकाश में उड़ सकते हैं, गधे, घोड़े क्यों नहीं ? हंस श्वेत क्यों है ? कोयल काली क्यों है ? पशु के चार पैर होते हैं, मनुष्य के दो ही क्यों हैं ? अग्नि की . ज्वाला जलते ही ऊपर को क्यों जाती है ? इन सब प्रश्नों का उत्तर केवल यही है कि विश्व-प्रकृति का जो नियम है, वह अन्यथा नहीं हो सकता। यदि अन्यथा होने लगे, तो फिर संसार में प्रलय ही हो जाए। सूर्य पश्चिम में ऊगने लगे, अग्नि शीतल हो जाए, गधेघोड़े आकाश में उड़ने लगे, तो फिर संसार में कोई व्यवस्था ही न रहे। अतः विश्व में अब तक जो कुछ होता रहा है, भविष्य में जो कुछ होगा और वर्तमान में भी जो हो सकता है, वह सब नियत है। नियति के अटल सिद्धान्त के समक्ष अन्य सब सिद्धान्त तुच्छ हैं। कोई भी व्यक्ति विश्व-प्रकृति के अटल नियमों के प्रतिकूल नहीं जा सकता। अतः विश्व में नियति ही सब से महान है।
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