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महावीर के सिद्धान्त : ८७
भी कार्य हो रहे हैं, सब वस्तुओं के अपने स्वभाव के प्रभाव से ही हो रहे हैं। स्वभाव के बिना काल, कर्म, नियति आदि कुछ भी नहीं कर सकते । आम की गुठली में आम का वृक्ष होने का स्वभाव है, इसी कारण माली का पुरुषार्थ सफल होता है, और समय पर वृक्ष तैयार हो जाता है। यदि काल ही सब - कुछ कर सकता है, तो क्या निबौली से आम का वक्ष उत्पन्न कर सकता है? कभी नहीं। स्वभाव का बदलना बड़ा कठिन कार्य है। कठिन क्या, असम्भव कार्य है । नीम के वृक्ष को गुड़ और घी से वर्षों सींचते रहिये, क्या वह मधुर हो सकता है ? दही बिलोने से ही मक्खन निकलता है, पानी से नहीं। क्योंकि दही में मक्खन देने का स्वभाव है। अग्नि का स्वभाव गर्म है, जल का स्वभाव शीतल है, सूर्य का स्वभाव दिन करना है और तारों का स्वभाव रात करना है । प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव के अनुसार कार्य कर रही है। स्वभाव के समक्ष बेचारे काल आदि क्या कर सकते हैं। कर्मवाद :
यह दर्शन तो भारतवर्ष में बहुत ही प्रसिद्धि - प्राप्त दर्शन है। भारतीय चिन्तन क्षेत्र में यह एक प्रबल दार्शनिक विचार - धारा हैं। कर्मवाद का कहना है काल, स्वभाव, पुरुषार्थ आदि सब नगण्य हैं। संसार
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