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८६ : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
है कि संसार में जो कुछ भी कार्य हो रहे हैं, सब काल के प्रभाव से ही हो रहे हैं। काल के बिना स्वभाव, पुरुषार्थ और नियति कुछ भी नहीं कर सकते। एक व्यक्ति पाप या पुण्य का कार्य करता है, परन्तु उसी समय उसे उसका फल नहीं मिलता। समय आने पर ही अच्छा-बुरा फल प्राप्त होता है। एक बालके आज जन्म लेता है। आप उसे कितना ही चलाइये, वह चल नहीं सकता। कितना ही बुलवाइए, बोल नहीं सकता। समय आने पर ही चलेगी और बोलेगा। जो बालक आज सेर भर का पत्थर नहीं उठा सकता, वह काल - परिपाक के बाद युवा होने पर मन भर पत्थर को अधर उठा लेता है। आम का वृक्ष आज बोया है, क्या आज ही उसके मधुर फलों का रसास्वादन कर सकते हैं? वर्षों के बाद कहीं आम्रफल के दर्शन होंगे। श्रीमऋतु में ही सूर्य तपता है, शीतकाल में ही शीत पड़ता है। युवावस्था में ही पुरुष के दाढ़ी - मूछ आती हैं। मनुष्य स्वयं कुछ नहीं कर सकता । समय आने पर ही सर्व कार्य स्वतः होते हैं। अतः काल की बड़ी महिमा है। स्वभाववाद:
यह दर्शन भी कुछ कम बजनदार नहीं है। वह भी अपने समर्थन में बड़े अच्छे तर्क उपस्थित करता है। स्वभाववाद का कहना है कि संसार में जो - कुछ
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