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भक्तामर स्तोत्र
: ४५ : महाजलोदर - रोग भार • पीड़ित नर जे हैं। बात - पित्त - कफ-कुष्ट, आदि जे रोग गहे हैं ।। सोचत रहैं उदास, नाहिं जीवन की आशा । अति घिनावनी देह धरै, दुर्गन्ध निवासा ॥ तुम पद - पंकज-धूल को, जो लावें निज अंग । ते निरोग शरीर लहिं, छिन में होहिं अनंग ॥
पाँव कंठते जकरि, बांध साँकल अतिभारी। गाढ़ी बेड़ी पर मांहि, जिन जाँघ विदारी ॥ भूख - प्यास चिंता शरीर, दुःख से बिललाने । शरन नाहिं जिन कोय, भूप के बंदीखाने । तुम सुमरत स्वयमेव ही, बन्धन सब खुल जाहिं । छिनमे ते सम्पति लहैं, चिन्ता भय विनसाहि ।।
: ४७ : महामत्त गजराज और मगराज दवानल । फनपति रन परचंड, नीरनिधि रोग महावल ।। बन्धन ये भय आठ, डरप कर मानो नाशै । तुम सुमरत छिनमाहिं, अभय थानक परकाशै ॥ इस अपार संसार में शरन नाहिं प्रभु कोय । यातें तुम पद भक्त को, भक्ति सहाई होय ॥
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