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भक्तामर-स्तोत्र
तन्तप) सामने से आते हुए (इभम्) हाथी को (दृष्ट्वा ) देख कर भी (भवदाश्रितानाम्) आपके आश्रित मनुष्यों को (भयं) भय (नो भवति) नहीं होता।
भावार्थ-दिन-रात बहने वाले मद से मलिन एवं चंचल कपोल-मूलों पर मँडराने वाले मत्त भोंरों के नाद से अत्यन्त क्रुद्ध, इन्द्र के ऐरावत हाथी के समान विशाल एवं मदमत्त हाथी को आक्रमण करते हए देख कर भी आपके आश्रित भक्तों को कुछ भी भय नहीं होता। आपके आश्रय में भय कहाँ ?
टिप्पणी ३८ से ४७ तक के श्लोकों में कहा है, कि भक्त को अभय होकर रहना चाहिए। उक्त श्लोकों का पाठ करते हुए अन्तर्मन में यह दिव्य विचार करना चाहिए, कि इन भयों में से एक भी भय या संकट मुझे कभी विचलित नहीं कर सकेगा। भगवान् अभय - मूर्ति हैं, तो मैं उनका भक्त क्यों भयभीत रहूं। प्रभु की कृपा से मुझ में उस लोकोत्तर दिव्य शक्ति का आविर्भाव हो, जिससे कि न मैं किसी से भयभीत बनू और न किसी को भयभीत करूं। भिन्नेभ - कुम्भगलदुज्ज्वलशोणिताक्त
मुक्ताफल - प्रकर - भूषित - भूमिभागः ।
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