________________
वीर-स्तुति
नहीं रहा, क्योंकि भगवान अपने युग में एक अर्थात् अद्वितीय महापुरुष थे। दूसरा उन जैसा विलक्षण-असाधारण, बेजोड़ महापुरुष कौन था ? कोई भी नहीं।
३. भगवान जब राजा सिद्धार्थ के पुत्र थे, तो फिर अजन्मा कैसे हो सकते हैं ? अजन्मा का अर्थ है-जन्म नहीं लेने वाला। विरोध-परिहार के लिए यों समझा जा सकता है कि भगवान ने राजा सिद्धार्थ के यहाँ पुत्र-रूप में जन्म अवश्य लिया, परन्तु बाद में साधना के द्वारा अजर-अमर अजन्मा हो गए। बताइए, भगवान मोक्ष में चले गए, फिर जन्म कहाँ लिया ? अजन्मा हो गए न ! अथवा राजा सिद्धार्थ के यहाँ जन्म, पर्याय-दृष्टि या व्यवहार दृष्टि से था। निश्चय दृष्टि से तो भगवान आत्म-स्वरूप ही थे । और आत्मा कभी जन्म लेता नहीं। आत्मा तो अनादि-अनन्त है, अजन्मा है ।
४. भगवान श्रीमान् होते हुए भी भव के राग से रहित थे । भला जो श्रीमान्-धनवान् होगा, वह संसार के राग से रहित कैसे होगा ? श्रीमान का और वीतराग का विरोध है। विरोध-परिहार के लिए श्रीमान् का अर्थ धनवान न लेकर शोभावान् करना चाहिए। भगवान की वीतराग-विभूति ही तो उनकी सबसे बड़ी शोभा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org