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वीर-स्तुति
यदीया वाग्गंगा विविध नय-कल्लोल-विमला, बृहज्ज्ञानाम्भोभिर्जगति जनतां या स्नपयति । इदानीमप्येषा बुधजन-मरालैः परिचिता, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी भवतु नः।।
जिन्हों की वाग्गंगा विविध-नय-कल्लोल-विमला, न्हिलाती भक्तों को विमल अति सद् ज्ञान जल से। अभी भी सेते हैं बुध-जन महाहंस जिसको, महावीर स्वामी नयन-पथ-गामी सतत हों।
जिनकी वाणी की गंगा विविध प्रकार के नयों की अर्थात् वचन-पद्धतियों की तरंगों से विमल है, अपने अपार ज्ञान जल से अखिल विश्व की संतप्त जनता को स्नान कराकर शांति देती है-भव-ताप हरती है, आज भी बड़े-बड़े विद्वानरूपी हंसों द्वारा सेवित है, वे भगवान महावीर स्वामी हमारे नयन-पथ पर सदा विराजमान रहें।
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