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________________ वीर-स्तुति दिखाई देता हो, परन्तु वास्तव में विरोध न हो। उदाहरण के लिए विहारी का दोहा देखिए "तंत्रीनाव कवित्तरस सरस राग-रति रंग। अन-बूड़े बूड़े, तरे जे बूड़े सब अंग।" उपर्युक्त दोहे के - 'अनबूड़े बूड़े, तरे जे बूड़े सब अंग"वाले उत्तरार्द्ध में विरोधाभास अलंकार है । अनबूड़े का अर्थ है-नहीं डूबा हुआ, और बूड़े का अर्थ है-'डूबा हुआ।' अब परस्पर विरोध है कि जो डूबा हुआ नहीं है, वह डूबा हुआ कैसे हो सकता है ? दोनों बातें परस्पर विरुद्ध हैं । विरोध का . परिहार दूसरे अर्थ के द्वारा किया जा सकता है । अन बूड़े का अर्थ है-'नहीं डूबा हुआ' और बूड़े का अर्थ है-'नष्ट हो जाना।' अर्थात् जो लोग तंत्री-नाद कवित्त-रस आदि में डूबे नहीं हैं, पूर्णरूप से निमग्न नहीं हैं, केवल मामूली ऊपर से दखल रखकर अभिमान करते हैं, वे डूब जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं। इसी प्रकार जो सब अङ्ग से बूड़े हैं अर्थात् डूबे हुए हैं, वे तरे हुए कैसे हो सकते हैं ? यहाँ पर भी बूड़े का अर्थ पूर्णतया निमग्न अर्थात् तन्मय होना है, और तरे का अर्थ तरना-श्रेष्ठ होना है। अभिप्राय यह है कि जो तंत्रीनाद आदि में सब प्रकार से डूबे हुए हैं, निमग्न हैं, वे तर जाते हैं, सफल एवं श्रेष्ठ हो जाते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि विरोधाभास अलंकार क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001420
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1981
Total Pages58
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & agam_related_other_literature
File Size2 MB
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