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केवलज्ञान
51 पूर्णत: विशुद्ध ज्ञान । इस प्रकार केवलज्ञान यह विज्ञानवादी बौद्धों के ग्राह्यग्राहकाकार विनिर्मुक्त विशुद्ध विज्ञान जैसा होगा । वह रागमुक्त तो है ही किन्तु कोई भी विषयाकार से भी मुक्त है। यही बात को श्रीमद् राजचन्द्र और अन्य जैन चिन्तकों ने अन्य शब्दों में प्रस्तुत किया है। केवल आत्मा का ज्ञान ही केवलज्ञान ।। आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने 'नियमसार' के शुद्धोपयोगधिकार (गाथा १५८) में लिखा है - 'केवली भगवान समस्त पदार्थों को जानते हैं' यह कथन व्यवहारनय से है परन्तु निश्चयनय से वे अपने
आत्मस्वरूप को जानते हैं । अत: फलित होता है कि केवली की परपदार्थज्ञता व्यावहारिक है, नैश्चयिक नहीं है, पारमार्थिक नहीं है। इस सन्दर्भ में यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि कुन्दकुन्द व्यवहारनय को अभूतार्थ (असत्य) और निश्चयनय को भूतार्थ (सत्य) मानते हैं। 4 परिणामतः सर्वज्ञता का पर्यवसान आत्मज्ञता में ही हो जाता है। और इस प्रकार, उपनिषद के "आत्मनो (= एकस्य) विज्ञानेन सर्व विदितं भवति" वाक्य के आशय के निकटतम कुन्दकुन्द का विचार पहुँच जाता है। उपनिषद का यह सर्वज्ञत्व और कुछ नहीं लेकिन मात्र आत्मज्ञत्व ही है। ‘आत्मा ही सब कुछ है, सर्व का सारभूत है, जिसने इसे जान लिया उसने सब जान लिया, अर्थात् जिसने आत्मा को जाना उसे अन्य जानने का कुछ प्रयोजन नहीं है यह भाव है। अतः वास्तव में केवलज्ञान यह सर्वज्ञत्व नहीं है। सर्वज्ञत्व का उस पर आरोप किया गया है। केवलज्ञान' शब्द स्वयं सर्वज्ञत्व का अर्थ नहीं देता। केवलज्ञान पर सर्वज्ञत्व का आरोप क्यों ? ___ उस काल में सर्वज्ञत्व की प्रतिष्ठा अनेक धर्मसम्प्रदायों में, दार्शनिक विचारधाराओं में एवं सामान्य जनों में दृढीभूत हुई होगी। अर्थात् मूलत: सर्वज्ञत्व को अस्वीकार्य माननेवाले को भी उससे प्रभावित होकर सर्वज्ञत्व को स्वीकार करने का दबाव महसूस हुआ हो, यह स्वाभाविक है। अब हम विभिन्न धर्मपरम्पराओं में सर्वज्ञत्व की विभावना पर विचार करेंगे। ___ बौद्ध परम्परा में सर्वप्रथम बुद्ध का दावा मात्र तीन विद्याओं का ही है - (१) पूर्वजन्मों की घटनाओं को पूर्ण रूपेण जानने की विद्या, (२) दिव्य चक्षु द्वारा प्राणी को उत्पन्न होते हुए, मरते हुए एवं स्वर्गलोक में जाते हुए देखने की विद्या तथा (३) आम्रवों(दोषों)के क्षय से चित्त एवं प्रज्ञा की विमुक्ति का साक्षात्कार' । यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि भविष्यत्विषयक ज्ञान का कोई भी निर्देश नहीं है। बुद्ध स्वयं सर्वज्ञ होने का दावा नहीं करते, इसके विपरीत वे सर्वज्ञता को असम्भव समझते हो ऐसा प्रतीत होता है। कालान्तर में उपर्युक्त तीन विद्याओं में अन्य सात विद्याओं का
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