SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ अणुपुव्वमणणुपुव्वं झीणमझीणं च दंसणे मोहे । उवसामगे च खवगे च संकमे मग्गणोवाया ॥३६॥ एक्केक्कम्हि य हाणे पडिग्गहे संकमे तदुभए च । भविया वाऽभविया वा जीवा वा केसु ठाणेसु ॥४०॥ कदि कम्हि होति ठाणा पंचविहे भावविधिविसेसम्हि । संकमपडिग्गहो वा समाणणा वाध केवचिरं ॥४१॥ णिरयगइ-अमर-पंचिंदिएस पंचेव संकमठाणा। सव्वे मणुसगईए सेसेसु तिगं असरणीसु ॥४२॥ चदुर दुगं तेवीसा मिच्छत्ते मिस्सग्गे य सम्मत्ते । वावीस पणय छक्कं विरदे मिस्से अविरदे य ॥४३॥ तेवीस सुक्कलेस्से छक्कं पुण तेउ-पम्मलेस्सासु । पणयं पुण काऊए णीलाए किण्हलेस्साए ॥४४॥ आनुपूर्वीसंक्रमस्थान, अनानुपूर्वीसंक्रमस्थान, दर्शनमोहनीयके क्षयसे प्राप्त हुए संक्रमस्थान, दर्शनमोहनीयके क्षयके बिना प्राप्त हुए संक्रमस्थान, उपशामकके प्राप्त हुए संक्रमस्थान और क्षपकके प्राप्त हुए संक्रमस्थान इस प्रकार ये संक्रमस्थानोंके विषयमें गवेषणा करनेके उपाय हैं ॥३९॥ प्रतिग्रह, संक्रम और तदुभयरूप एक एक स्थानमेंसे कितने स्थानों में भव्य जीव होते हैं, कितने स्थानोंमें अभव्य जीव होते हैं और कितने स्थानोंमें अन्य मार्गणावाले जीव होते हैं ॥४०॥ यथायोग्य पाँच प्रकारके भावोंसे युक्त चौदह गुणस्थानोंमेंसे किस गुणस्थानमें कितने संक्रमस्थान और कितने प्रतिग्रहस्थान होते हैं। तथा किसका कितना काल है ॥४१॥ नरकगति, देवगति और पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें पाँच, मनुष्यगतिमें सब तथा शेषमें अर्थात् एकेन्द्रियों और विकलत्रयोंमें तथा असंज्ञि योंमें तीन संक्रमस्थान होते हैं ॥४२॥ मिथ्यात्वमें चार, सम्यग्मिथ्यात्वमें दो, सम्यक्त्वमें तेईस, विरतमें बाईस, विरताविरतमें पाँच और अविरतमें छह संक्रमस्थान होते हैं ॥४३॥ शक्ललेश्यामें तेईस, पीत और पद्मलेश्यामें छह तथा कापोत नील और कृष्ण लेश्यामें पाँच संक्रमस्थान होते हैं ॥४४॥ १, कर्मप्रकृति संक्रम गा० २२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy