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________________ ५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ संकाम० लोगस्स असंखे०भागो। सेसपयडीणं संकाम० दंसणतियअसंकाम० लोग० असंखे भागो एक-वे-तिण्णि-चत्तारि-पंच-छचोदस० देसूणा । अणंताणु०४असंका० खेतं । ___ १३५. तिरिक्खेसु मिच्छ०संकाम० लोयस्स असंखे० भागो छ चोदस० देसूणा । असंकाम० सव्वलोओ। सम्म०-सम्मामि०संकाम०-असंकाम० लोयस्स असंखे०भागो सव्वलोगो वा । सोलसक०-णवणोक०संकाम० सव्वलोगो । अणंताणु ०४असंका० खेतं । ६ १३६. पंचिंदियतिरिक्खतिए मिच्छ०संका० लोगस्स असंखे०भागो छ चोदस० देसूणा। सेसपयडीणं संकाम० दंसणतियअसंकाम० लोयस्स असंख०भागो सव्वलोगो वा। अणंताणु०४असंका० खेतं । ___ १३७. पंचितिरि०अपज० सम्म०-सम्मामि०संकाम०-असंकाम० सोलसक०णवणोक०संकाम० लोयस्स असंखे० भागो सव्वलोगो वा । मिच्छ०असंका० एसो' चेव भंगो । एवं मणुसतिए । णवरि मिच्छ० संकाम० सोलसक०-णवणोक०असंका० लोयस्स मिथ्यात्वके संक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष प्रकृतियोंके संक्रामकोंने और तीन दर्शनमोहनीयके असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रका तथा त्रस नालीके चौदह भागोंमें से कुछ कम एक भाग, कुछ कम दो भाग, कुछ कम तीन भाग, कुछ कम चार भार, कुछ कम पांच भाग और कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कके असंक्रामकोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। १३५. तिर्य चोंमें मिथ्यात्वके संक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। असंक्रामकोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामत्रों और असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकोंने सब लोकका स्पर्श किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामकोंका स्पर्श क्षेत्र के समान है। ६ १३६. पंचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिकमें मिथ्यात्वके संक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसन'लीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । शेष प्रकृतियों के संक्रामकोंने और तीन दर्शनमोहनीयके असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामकोंका स्पर्श क्षेत्रके समान है। ६ १३७. पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामकों और असंक्रामकोंने तथा सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। यहां मिथ्यात्वके असंक्रामकोंका भी यही भंग है। अर्थात् मिथ्यात्वके असंक्रामकोंने भी लोकके असंख्यातवें भाग और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्व के संक्रामकोंने तथा सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें १. प्रा०प्रतौ मिच्छ० असंखे० एसो इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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