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________________ गा० २६ ] पोसणं ५७ णवरि मिच्छ०असंका० सव्वलोगे । सोलसक०-णवणोक०संकामया सव्वलोए । असंकाम० लोगस्स असंखे०भागे। एवं तिरिक्खा० । णवरि बारसक०-णवणोकसायाणं असंकामया णत्थि । सेसगइमग्गणासु सव्वपयडीणं संकामया जहासंभवमसंकामया च लोयस्स असंखे०भागे। एवं जाव अणाहारि त्ति णेदव्वं । १३३. पोसणाणुगमेण दुविहो जिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ संकामएहि केवडियं० ? लोगस्स असंखे०भागो अट्ठ चोदसभागा देसूणा । असंकामएहि सव्वलोओ। सम्म०-सम्मामि० संकामए० असंकाम० लोगस्स असंखे०भागो अट्ठ चोद्द० सव्वलोगो वा । सोलसक०-णवणोक० संकाम० सव्वलोगो। असंका० लोयस्स असंखे०भागो । णवरि अणंताणु०४असंका० ? अटुं चोद्द० देसूणा ।। ___१३४. आदेसेण णेरड्य० मिच्छ० संकाम० केव० ? लोगस्स असंखे०भागो । सेसपयडीणं संकाम० दंसणतियअसंकाम० लोयस्स असंखे०भागो छ चोद्दस । अणंताणु०४असंका० खेत्तं । पढमाए खेत्तभंगो। विदियादि जाव सत्तमा त्ति मिच्छ०असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि मिथ्यात्वके असंक्रामक जीव सब लोकमें रहते हैं। सोलह कपाय और नौ नोकषायोंके संक्रामक जीव सब लोकमें रहते हैं। तथा इनके असंक्रामक जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें रहते हैं। इसी प्रकार तिर्यंचोंके जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें बारह कपाय और नौ नोकषायोंके असंक्रामक जीव नहीं हैं। इनके अतिरिक्त शेष गति मार्गणाओंमें सब प्रकृतियोंके संक्रामक और यथासम्भव असंक्रामक जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। ६१३३. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है—ोघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे मिथ्यात्वके संक्रामक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातर्वे भागका और त्रस नालीके चौदह भोगोंमेंसे कुछ कम आठ भाग क्षेत्रका स्पर्श किया है। मिथ्यात्वके असंक्रामकोंने सब लोकका स्पर्श किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक और असंक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका बसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके संक्रामक जीवोंने सब लोकका स्पर्श किया है । असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है । किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामकों ने बसनालीके चौदह भागों से कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। ६१३४. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके संक्रामक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष प्रकृतियोंके संक्रामकोंने और तीन दर्शनमोहनीयके असंक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और वसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके असंक्रामकोंका स्पर्श क्षेत्र के समान है। पहली पृथिवीमें स्पर्श क्षेत्रके समान है। दूसरीसे लेकर सांतवीं तक प्रत्येकमें १. श्रा०प्रतौ अणंताणु०४ असंखे०भागो अट्ठ इति पाठः । २. श्रा०प्रतौ अणंताणु०४ असंखे० खेत्त इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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