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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ संखेजा भागा । असंकामया संखे०भागो। अणुदिसादि [जाव] सव्वट्ठा त्ति अणंताणु०चउकस्स संकामया असंखेजा भागा। असंकाम० असंखे भागो । णवरि सबढे संखेज्जं कायव्वं । सेसाणं णत्थि भागाभागो । सव्वत्थ कारणं सुगमं । एवं जाव०। १३०. परिमाणाणु० दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त०सम्म०-सम्मामि० संकामया दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेजा। सोलसक०णवणोक०संकामया केत्तिया ? अणंता । एवं तिरिक्खा० ।। $ १३१. आदेसेण णेरइ० अट्ठावीसं पयडीणं संकामया केत्तिया ? असंखेजा । एवं सव्वणेरइय-पंचिंदियतिरिक्खतिय-देवा जाव णवगेवजा त्ति । पंचिं०तिरि०अपज०-मणुसअपज०-अणुदिसादि जाव अवराइदा त्ति सत्तवीसपयडीणं संकामया केत्तिया ? असंखेजा। मणुस्सेसु मिच्छत्तस्स संकामया संखेजा । सेसाणमसंखेजा । मणुसपज०-मणुसिणी-सव्वट्ठदेवेसु सव्वपयडीणं संकामया केवडिया ? संखेजा । एवं जाव अणाहारि त्ति णेदव्वं । १३२. खेत्ताणुगमेण दुविहो णिदेसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ०सम्म०-सम्मामि०संकामया केवडि खेत्ते ? लोगस्स असंखे भागे । एवमसंकामया । इतनी विशेषता है कि यहाँ मिथ्यात्वके संक्रामक संख्यात बहुभागप्रमाण हैं और असंक्रामक संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अनन्तानबन्धीचतुष्कके संक्रामक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। असंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। किन्तु इतनी विशेषता है कि सर्वार्थसिद्धि में असंख्यातके स्थानमें संख्यातका कथन करना चाहिये । यहां शेप प्रकृतियोंका भागाभाग नहीं है । सर्वत्र कारण सुगम है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । ६ १३०. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और श्रादेशनिर्देश । ओघसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक कितने हैं ? असंख्यात हैं। सोलह कषाय और नौ नोकपायोंके संक्रामक कितने हैं ? अनन्त हैं। इसी प्रकार तिर्थञ्चोंमें संख्या कहनी चाहिये। ६ १३१. श्रादेशसे नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, पंचेन्द्रियतिर्थञ्चत्रिक और नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिये । पंचेन्द्रिय तियं च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें सत्ताईस प्रकृतियोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्योंमें मिथ्यात्व के संक्रामक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंके संक्रामक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यपर्याप्त मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धि के देवोंमें सब प्रकृतियोंके संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। ६१३२. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेश निर्देश । ओघसे मिथ्यात्व, मम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके संक्रामक जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। इसी प्रकार उक्त प्रकृतियोंके असंक्रामक जीव भी लोकके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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