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________________ ३६८ जयघवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ संकामेमाणो तदो उक्कस्सं दाहं गंतूण उकस्सट्ठिदिं पबद्धो तस्स आवलियादीदस्स तस्स उक्क० वड्डी। तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । उक्क० हाणी कस्स ? अण्णदर० जो उक्कस्सहिदि संकामेमाणो उकस्सट्ठिदिखंडयं हणइ तस्स उक्क० हाणी । एवं णवण्हं णोकसायाणं । णवरि उक्क० वड्डी कस्स ? सोलसक० उक्क द्विदि पडिच्छिणावलियादीदस्स तस्स उक्क. वड्डी। तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं। सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो तप्पाओग्गजहण्णद्विदि संका० मिच्छ० उक्क ट्ठिदि बंधिसूण द्विदिघादमकादणंतोमुहुत्तं सम्मत्तं पडिवन्जिय तस्स विदियसमयवेदयसम्माइटिस्स तस्स उक्कस्सिया वड्डी। उक्कस्समवट्ठाणं कस्स ? अण्णद० जो पुव्वुप्पण्णादो सम्मत्तादो मिच्छत्तस्स समयुत्तरहिदि बंधिय सम्म पडिव० तस्स उक्क० अवट्ठाणं । उक्क. हाणी कस्स ? अण्णद० जो उक० द्विदि संका० उक्क० द्विदिखंडयं हणइ तस्स उक्क० हाणी । एवं चदुसु गदीसु । णवरि पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज० मिच्छ०-सोलसक०णवणोक० उक० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो तप्पाओग्गजहण्णहिदिं संका० तप्पाओग्गउक्क ट्ठिदि पबद्धो तस्स आवलियादीदस्स उक्क० वड्डी । तस्सेव से काले उक० अवट्ठा० । उक्क० हाणी विहत्तिभंगो। सम्म०-सम्मामि० उक्क० हाणी विहत्तिभंगो। आणदादि णवगेवजा त्ति मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० उक० हाणी विहत्तिभंगो । सम्म०उत्कृष्ट दाहको प्राप्त होकर उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया, उस जीवके एक आवलिके बाद स्थितिसंक्रम की उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसी जीवके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करनेवाला जो जीव उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसी प्रकार नौ नोकषायोंका स्वामित्व है। किन्तु इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करके जिसका एक आवलि काल गया है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। तथा उसीके अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिका संक्रम करनेवाले जिस जीवने मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्धकर स्थितिघात किये बिना अन्तमुहूर्तमें सम्यक्त्वको प्राप्त किया है द्वितीय समयवर्ती उस वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? जो पहले उत्पन्न हुए सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर। एक समय अधिक स्थितिका बन्धकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उसके उत्कृष्ट अवस्थान होता है । उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करनेवाला जो जीव उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करता है उसके उत्कृष्ट हानि होती है। इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तियेच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कपायों और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? तत्प्रायोग्य जघन्य स्थितिका संक्रम करनेवाले जिस जीवने तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया है उसके एक आवलिके बाद उत्कृष्ट वृद्धि होती है। उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। उत्कृष्ट हानिका भंग स्थितिविभक्तिके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट हानिका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषायों और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट हानिका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको उत्कृष्ट वृद्धि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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