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________________ गा०५८] उत्तरपयडिविदिपदणिक्खेवसकमे सामित्त ३६६ सम्मामि० उक्क० बड्डी कस्स ? जो वेदगपाओग्गसम्मत्तजहण्णढिदिसंकामश्रो मिच्छाइट्ठी सम्मत्तं पडि० तस्स विदियसमयवेदयसम्माइडिस्स उक० वड्डी । हाणी विहत्तिभंगों। अणुद्दिसादि सव्वट्ठा त्ति २८ पयडीणं हाणी विहत्तिभंगो । एवं जाव० । ८५४. जहण्णए पयदं। दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो समय॒णुक्क०डिदिसंकमादो तदो उक्क० द्विदि पबद्धो तस्स आवलियादीदस्स तस्स जह० वड्डी । जह० हाणी कस्स० ? अण्णद० उक्क द्विदिसंकमादो समयूण द्विदि संकामयस्स तस्स जहणिया हाणी ? एयदरत्थमवट्ठाणं । सम्म०-सम्मामि० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो पुव्वुप्पण्णादो सम्मत्तादो मिच्छत्तस्स विदियसमयुत्तरं द्विदि बंधियूण सम्मत्तं पडिवण्णो तस्प विदियसमयसम्माइटि० तस्स जह० वड्डी। जह०मवट्ठाणमुक्कस्सभंगो । हाणी अधट्ठिदि गालेमाणस्स । एवं चदुगदीसु । णवरि पंचिंतिरिक्खअपज्जा-मणुसअपज्ज० सम्म०-सम्मामिच्छत्त० अवट्ठाणं वड्डी च णत्थि । आणदादि णवगेवजा त्ति २६ पयडीणं जह. हाणी अधद्विदिं गालयमाणयस्स । सम्म०-सम्मामि० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० जो सम्माइट्ठी मिच्छत्तं गंतूण एयं द्विदिखंडयमुव्वेल्लेयूण सम्मत्तं पडिवण्णो किसके होती है ? वेदकसम्यक्त्वके योग्य जघन्य स्थितिका संक्रम करनेवाला जो मिथ्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ द्वितीय समयवर्ती उप्स वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उत्कृष्ट हानिका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें २८ प्रकृतियोंकी हानिका भंग स्थितिविभक्तिके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। ८५४. जघन्यका प्रकरण है । दो प्रकारका निर्देश है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करनेवाले अन्यतर जिस जीवने उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध किया, एक आवलिके बाद उस जीवके उत्कृष्ट वृद्धि होती है। जघन्य हानि किसके होती है ? जिस अन्यतर जीवने उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम करके एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिका संक्रम किया उसके जघन्य हानि होती है। तथा इनमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर जीव पहले उत्पन्न हुए सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर मिथ्यात्वकी दो समय अधिक स्थितिका वन्ध कर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ उस द्वितीय समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके जघन्य वृद्धि होती है। जघन्य अवस्थानका भंग उत्कृष्टके समान है। हानि अधःस्थितिको गलानेवालेके होती है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अवस्थान और वृद्धि नहीं है। आनत कल्पसे लेकर नौ अवेयक तकके देवोंमें २६ प्रकृतियों जघन्य हानि अधःस्थितिको गलानेवालेके होती है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव मिथ्यात्वमें जाकर एक स्थितिकाण्डककी उद्वेलना करके सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ, द्वितीय समयवर्ती उस जीवके जघन्य १. ता प्रतौ उक्क हाणी ( वड्डी ) वड्डी ( हाणी ) विहत्तिभंगो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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