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________________ ३६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ ६८३९. एत्थ वेदयपाओग्गजहण्णट्ठिदिसंतकम्मिओ णाम दुविहो—किंचूणसागरोवमट्ठिदिसंतकम्मिओ तप्पुधत्तमेत्तद्विदिसंतकम्मिओ च । एत्थ पुण सागरोवममेत्तहिदिसंतकम्मिओ एइंदियपच्छायदो घेत्तव्यो, उकस्सवड्डीए पयदत्तादो। तदो एवंविरुण द्विदिसंतकम्मेणुवलक्खिओ जो मिच्छाइट्टी मिच्छत्तस्स उकस्सट्ठिदिं बंधियूणंतोमुहुत्तपडिभग्गो तप्पाओग्गविसुद्धीए मिच्छत्तस्स ट्ठिदघादमकाऊण वेदयसम्मत्तं पडिवण्णो, तम्मि चेव समए मिच्छत्तट्ठिदिमंतोमुहुत्तूणसत्तरिसागरोवममेत्तं विवक्खिय कम्मेसु संकामिय विदियसमयमुक्गओ तस्स विदियसमयसम्माइडिस्स पयदुक्कस्ससामित्तं होइ, तत्थ थोवूणसागरोवमसंकमादो हेट्ठिमसमयपडिबद्धादो तदूर्णसत्तरिसागरोवममेत्तहिदिसंकमस्स बुड्डिदंसणादो। छ हाणी मिच्छत्तभंगो। ६ ८४०. जहावुत्तकमेण बुड्डिसंकमं काऊण तदो अंतोमुहुत्तेण सव्वुक्कस्सद्विदिखंडए घादिदे तत्थ तदुक्कस्ससामित्तं पडि भेदाभावादो । * उकस्सयमवहाणं कस्स ? ६८४१. सुगम। ® पुव्वुप्पएणादो सम्मत्तादो समयुत्तरमिच्छत्तद्विदिसंतकम्मित्रो सम्मत्तं पडिवएणो तस्स विदियसमयसम्माइटिस्स उकस्सयमवहाण । ६८३६. यहाँ पर वेदकसम्यक्त्वके योग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाला जीव दो प्रकारका है-कुछ कम एक सागर स्थितिसत्कर्मवाला और सागरपृथक्त्वप्रमाण स्थितिसत्कर्मवाला । परन्तु यहाँ पर एकेन्द्रियोंमेंसे लौटकर आया हुआ एक सागर स्थितिसत्कर्मवाला जीव लेना चाहिए, क्योंकि उत्कृष्ट वृद्धिका प्रकरण है। इसलिए इसप्रकारके स्थितिसत्कर्मसे उपलक्षित जो मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कर अन्तर्मुहूर्तमें प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य विशुद्धिसे मिथ्यात्वका स्थितिघात किये विना वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ और उसी समय मिथ्यात्वकी अन्तर्मुहर्तकम सत्तर कोड़ाकोड़ीसागरप्रमाण स्थितिको विवक्षित कर्मों में संक्रमित कर दूसरे समयको प्राप्त हुआ उस द्वितीय समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्व होता है, क्योंकि वहाँ पर पिछले समयमें होनेवाले कुछ कम एक सागरप्रमाण स्थितिसंक्रमसे किश्चित् न्यून एक सागर कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिसंक्रमकी वृद्धि देखी जाती है। * हानिका भंग मिथ्यात्वके समान है। ६८४०. पूर्वोक्त क्रमसे वृद्धिसंक्रमको करके तदनन्दर अन्तर्मुहूर्तमें सबसे उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकका घात करने पर वहाँ मिथ्यात्वके उत्कृष्ट स्वामित्वसे इनके उत्कृष्ट स्वामित्वमें कोई भेद नहीं है। * उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है । ६८४१. यह सूत्र सुगम है। * जो जीव पूर्वमें उत्पन्न हुए सम्यक्त्वसे मिथ्यात्वमें जाकर एक समय अधिक मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मके साथ सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ उस द्वितीय समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके उत्कृष्ट अवस्थान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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