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________________ गा०२६] विदियगाहाए पदच्छेदपरूवणा * एक काए' त्ति एगेगपयडिसंकमो, 'संकमो दुविहो' त्ति दुवि हो संकमो तिं भणिदं होइ, “संकमविही य' त्ति पयडिहाणसंकमो, ‘पयडीए' त्ति पयडिसंकमो त्ति भणियं होह। ४८. पयडीए संकमो दुविहो–एकेकाए पयडीए संकमो पयडीए संकमविही चेदि गाहापुव्वद्धम्मि एवंविहसंबंधपदुप्पायणहमागयस्सेदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा—संकमो दुविहो ति दुविहो संकमो ति भणिदं होइ। एसो विदिओ सुत्तावयवो पढमं वक्खाणेयव्वो। तदो संकमो अविसिट्ठो ण होइ ति जाणावणटुं पयडीए त्ति भणिदं होइ त्ति एदेण चरिमसुत्तावयवेणाहिसंबंधो कायव्यो। तदो पयडिसंकमो दुविहो त्ति दोण्हं सुत्तावयवाणमत्थसंगहो। संपहि कथं दुविहत्तमिदि उत्ते 'एकेक्काए' त्ति एगेगपयडिसंकमो 'संकमविही' य त्ति पयडिट्ठाणसंकमो इदि पढमतइजावयवाणमहिसंबंधो। कधं पुण एकेकाए त्ति एत्तियमेत्तेण एगेगपयडिसंकमो विण्णादु सक्को ? ण, 'पयडीए संकमो' ति उत्तरेण सह संबद्धेण तदुवलद्धीए । तहा 'संकमविही य' त्ति एत्थतणविहिसद्दस्स जहण्णुकस्स-तव्वदिरित्तपयारवाचयस्सावलंबणादो पयडिट्ठाणसंकमस्स गहणं पडिवज्जेयव्वं, एगेगपयडिविवक्खाए तदणुवलंभादो । तम्हा ___* 'एक्कैक्काए' इस पदद्वारा एकैकप्रकृतिसंक्रम और 'संक्रमो दुविहो' इस पदद्वारा संक्रम दो प्रकारका है यह कहा गया है। तथा 'संक्रमविही य' इस पदद्वारा प्रकृतिस्थानसंक्रम और ‘पयडीए' इस पदद्वारा प्रकृतिसंक्रम कहा गया है। ४८. गाथाके पूर्वार्धमें प्रकृतिसंक्रम दो प्रकारका है-एकैक' कृतिसंक्रम और प्रकृतिसंक्रमविधि इस प्रकारके सम्बन्धका कथन करनेके लिये आये हुए इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। यथा-'संक्रमो दुविहो' इस पदद्वारा संक्रम दो प्रकारका है यह कहा गया है। यद्यपि यह गाथा सूत्रका दूसरा अवयव है तथापि इसका सर्व प्रथम व्याख्यान करना चाहिये। किन्तु यहाँ पर सामान्य संक्रम नहीं लिया गया है यह जतानेके लिये गाथा सूत्रके पूर्वार्धके अन्तमें आये हुए 'पयडीए' इस पदके साथ 'संकमो दुविहो' इस पदका सम्बन्ध करना चाहिये । इसलिये प्रकृतिसंक्रम दो प्रकारका है यह गाथासूत्र के इन दोनों पदोंका समुच्चयार्थ होता है । अब यह प्रकृतिसंक्रम दो प्रकारका कैसे है ऐसा पूछनेपर गाथाके प्रथम पद 'एक्केक्काए' और तृतीय पद 'संकमविही य' इन दोनों पदोंका सम्बन्ध करके इन दोनों पदोंद्वारा क्रमसे एकैकप्रकृतिसंक्रम और प्रकृतिस्थानसंक्रम ये दो भेद बतलाये गये हैं। शंका-एक्केक्काए' इतनेमात्र पदसे एकैकप्रकृतिसंक्रमका ज्ञान कैसे किया जा सकता है ? समाधान_नहीं, क्यों कि 'पयडीए संकमो' इस उत्तर पदके साथ सम्बन्ध कर लेनेसे उक्त अर्थ प्राप्त हो जाता है। तथा 'संकमविही य' इस पदमें आये हुए जघन्य, उत्कृष्ट और तद्वयतिरिक्त प्रकारवाची विधि शब्दका अवलम्बन लेनेसे प्रकृतिस्थानसंक्रमका ग्रहण करना चाहिए, क्यों कि एक एक १. वी० सा० प्रतौ -पयडिसंकमो, दुविहो त्ति 'संकमो दुविहो' त्ति इति पाठः। २. ता प्रतौ 'संकमविही य' इत्यतः सूत्रांशस्य टीकांशेन निर्देश कृतः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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