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________________ ३४० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ ६८६. खवणाए लद्धजहण्णभावाणं तदुवलंभादो। संपहि एदेण सामण्णवयणेण विसंजोयणचरिमफालीए लद्धजहण्णभावाणमणंताणुबंधीणं चरिमट्ठिदिखंडए लद्धजहण्णसामित्ताणमट्ठणोकसायाणं च जहाणिहिट्ठजहण्णुक्कस्सकालाइप्पसंगे तप्पडिसेहदुवारेण तत्थतणविसेसपदुप्पायणट्ठमुवरिमं सुत्तद्दयमाह पवरि अणंताणुबंधीणं जहणणहिदिसंकमो केवचिरं कालादो होदि? जहएणेण एयसमो, उक्कस्सेण प्रावलियाए असंखेजविभागो। ६ ६८७. सुगमं । * इत्थि-णqसयवेद-छण्णोकसायाणं जहणणहिदिसंकमो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेणंतोमुहुत्तं । ६६८८. चरिमट्टिदिखंडयम्मि लद्धजहण्णभावाणं तदुवलंभादो। णवरि जहण्णकालादो उक्कस्सकालस्स संखेजगुणत्तमेत्थ दट्ठव्वं, संखेजवारं तदणुसंधाणावलंबणे, तदविरोहादो । एवमोघेण जहण्णट्ठिदिसंकमकालो' परूविदो। ६८९. सव्वासिमजहण्णहिदिसंकमकालो सव्वद्धा । एवं मणुसतिए । णवरि अणंताणु ०४ जहण्ण० जह० एयस०, उक्क० संखेजा समया। मणुस्सिणीसु पुरिसवेद० 6६८६. क्योंकि क्षपणामें जघन्यपनेको प्राप्त हुई उन प्रकृतियोंका उक्त काल प्राप्त होता है । अब इस सामान्य वचनके अनुसार विसंयोजनाकी अन्तिम फालिके पतनके समय जघन्यपनेको प्राप्त हुई अनन्तानुबन्धियोंके तथा अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतनके समय जघन्य स्वामित्वको प्राप्त हुए आठ नोकषायोंके यथानिर्दिष्ट जघन्य और उत्कृष्ट कालका प्रसंग प्राप्त होने पर उसके प्रतिषेध द्वारा वहाँ पर विशेषताका कथन करनेके लिए आगेके दो सूत्र कहते हैं ___* किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानु विन्धयोंके जघन्य स्थितिसंक्रमका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ६६८७. यह सूत्र सुगम है। * स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और छह नोकषायोंके जघन्य स्थितिसंक्रमका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ६६८८. अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतनके समय जघन्यपनेको प्राप्त हुए उक्त आठ नोकषायोंका उक्त काल प्राप्त होता है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ पर जघन्य कालसे उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा जानना चाहिए, क्योंकि संख्यातवार उनके कालका अविच्छिन्नभावसे अवलम्बन लेने पर जघन्य कालसे उत्कृष्ट कालके संख्यातगुणा होनेमें विरोध नहीं आता। इस प्रकार ओघसे जघन्यस्थितिसंक्रमका काल कहा। ६६. ओघसे सब प्रकृतियोंके अजघन्य स्थितिसंक्रमका काल सर्वदा है। इसी प्रकार मनुय्यत्रिकमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य स्थितिसंक्रमका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। मनुष्यिनियोंमें १. श्रा०प्रतौ -सकामयकालो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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