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________________ ३३२ जयधवला सहिदे कसायपाहु * एतो अंतरं । $ ६६९. एत्तो उवरि अंतरं वत्तइस्लामो त्ति पड़जासुत्तमेदं । तं पुण दुविहं जहण्ण्णुकस्सट्टि दिसंकमविसयभेदेण । तत्थुक्कस्सट्ठिदिसंकामयंतरं उकस्सट्ठिदिउदीरणंतरेण समाणपरूवणमिदि तेण तदप्पणं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भण्णइ * उक्कस्सयट्ठिदिसंकामयंतरं जहा उक्कस्सट्ठिदिउदीरणाए अंतरं तहा कायव्वं । ६७०. सुगममेदमपणासुतं । संपहिएदेण समप्पिदत्थविवरण मुच्चारणाणुसारेण वत्तइस्सामो । तं जहा — उक्क० पयदं । दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - बारसक० उक्क० ट्ठिदिसंका अंतरं के० १ जह० अंतोमु०, णवणोक० एयस०, उक्क० सव्वेसिमणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । अणु० जह० एयस०, उक० अंतोमु० । सम्म० - सम्मामि० उक० अणुक्क० ट्ठिदिसंका० जह० अंतोमु० एयस०, उक्क० उवढपोग्गलपरियट्टा । अणंताणु ०४ उक्क० ट्ठिदिसं० जह० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियङ्कं । अणु० जह० एयसमओ, उक० वेछावट्टिसागरो० देसूणाणि । आदेसेण सव्वासु गदीसु हिदिविहत्तिभंगो | णवरि मणुसतिए चदुणोकसायाणमणुकस्सु Jain Education International [ बंधगो ६ * अब इससे आगे अन्तरका अधिकार है । $ ६६६. अब इस कालप्ररूपणा के बाद अन्तर प्ररूपणाको बतलाते हैं। इस प्रकार यह प्रतिज्ञासूत्र है । वह दो प्रकारका है— जघन्य स्थितिसंक्रमको विषय करनेवाला और उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमको विषय करनेवाला | उनमें से उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकके अन्तरका कथन उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा के अन्तर के समान है, इसलिये उसकी प्रधानतासे आगेका सूत्र कहते हैं — * जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणाका अन्तर है उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका अन्तर प्राप्त करना चाहिये । $ ६७०, यह अर्पणासूत्र सुगम है । अब इसके द्वारा जो अर्थका विवरण प्राप्त होता है उसे उच्चारणा के अनुसार बतलाते हैं । यथा - उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैओघ निर्देश और प्रदेशनिर्देश । श्रघकी अपेक्षा मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका अन्तर कितना है ? जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है तथा इन सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकका उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति संक्रामकका जघन्य अन्तर क्रमसे अन्तर्मुहूर्त और एक समय है । तथा उत्कृष्ट अन्तर उपार्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट स्थिति संक्रामकका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छयासठ सागर है । आदेशकी अपेक्षा सब गतियों में स्थितिविभक्तिके समान भंग है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें चार नोकषायोंकी अनुत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका उत्कृष्ट For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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