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________________ गा०५८] उत्तरपयडिडिदिसंकमे एयजीवेण कालो ३२३ हिदिविहत्तिभंगो। णवरि सम्म०-अणंताणु०४ णारयभंगो । एवं जाव० । एवं जहण्णयं सामित्तं समत्तं । * एयजीवेण कालो। ६६५८. एत्तो एयजीवविसेसिदो कालो परूवणिजो। सो वुण दुविहोजहण्णओ उकस्सओ च । तत्थुक्कस्सओ ताव उक्स्सद्विदिउदीरणाकालादो ण भिजदि त्ति तदप्पणाकरणट्ठमुवरिमसुत्तविण्णासो ॐ जहा उक्कस्सिया द्विदिउदीरणा तहा उक्कल्सयो हिदिसंकमो। ६५९. सुगममेदमप्पणासुत्तं । संपहि एदिस्से अप्पणाए फुडीकरणद्वमुच्चारणं वत्तइस्सामो। तं जहा–तत्थ दुविहो णिद्देसो-ओघेणादेसेण य । ओघेण मिच्छ०सोलसक०-णवणोक० उक्क० द्विदिसंका० केव० १ जह० एयसमो, उक्क० अंतोमुहुत्तं । चदुणोक० आवलिया । अणुक्क० जह० अंतोमु०, णवणोक० एयसमओ, उक्क० अणंतकालमसंखेन्जपोग्गलपरियढें । सम्म०-सम्मामि० उक्क० ट्ठिदिसंका० जहण्णु० एयसमओ। अणु० जह० अंतोमु०, उक्क० वेछावट्ठिसागरो० सादिरेयाणि । और अनन्तानुवन्धीचतुष्कका भंग नारकियोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये। इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ। * अब एक जीवको अपेक्षा कालका अधिकार है। ६६५८. अब इससे आगे एक जीवकी अपेक्षा कालका कथन करना चाहिये । वह दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट। उनमें उत्कृष्ट कालका उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाके कालसे कोई भेद नहीं है, इसलिये उसकी प्रमुखतासे कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं___* जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा होती है उसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम है। ६५६. यह अर्पणासूत्र सुगम है। अब इस अर्पणाका स्पष्टीकरण करनेके लिये उच्चारणाको बतलाते हैं। यथा-निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश। ओघसे मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रामकका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। किन्तु चार नोकषायोंका उत्कृष्ट काल एक प्रावलि है। मिथ्यात्व और सोलह कषायोंके अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रामकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और नौ नोकषायोंका जघन्य काल एक समय है। तथा सभीका उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट स्थितिसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिसंक्रामकका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल साधिक दो छयासठ सागर है । विशेषार्थ-मिथ्यात्व और सोलह कषायोंकी बन्धसे और नौ नोकषायोंकी संक्रमसे उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होती है। यतः उत्कृष्ट स्थितिके बन्धका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है अतः इन सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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