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________________ ३०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ ____ मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्त-धारसकसाय-इत्थि-णवुसयवेदाणं जहएणहिदिसंकमो पलिदोवमस्स असंखेजविभागो। ____६१६. कुदो ? मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं दंसणमोहक्खवणाचरिमफालीए अणंताणुबंधीणं विसंजोयणाचरिमफालिसंकमे अट्ठकसायाणं च खवयस्स तेसिं चेव पच्छिमट्ठिदिखंडयचरिमफालिसंकमकाले इत्थि-णqसयवेदाणं पि चरिमट्ठिदिखंडयम्मि सुत्तुत्तपमाणजहण्णट्ठिदिसंकमसंभवोवलद्धीदो। एवमेदेसि कम्माणं जहण्णढिदिसंकमद्धाछेदं परूविय संपहि सम्मत्त-लोहसंजलणाणं तण्णिण्णयविहाणट्ठमुत्तरसुत्तमाह * सम्मत्त-लोहसंजलणाणं जहणणहिदिसंकमो एया हिदी। ६१७. सम्मत्तस्स दसणमोहक्खवणाए समयाहियावलियमेत्तसेसे लोहसंजलणस्स वि सुहुमसांपराइयक्खवणद्धाए समयाहियाबलियासेसाए ओकड्डणासंकमवसेण पयदद्धाछेदसंभवो वत्तव्यो । सेसकम्माणं जहण्णहिदिअद्धाच्छेदणिद्धारणट्ठमुवरिमो सुत्तपबंधो ® कोहसंजलणस्स जहण्णद्विदिसंकमो वे मासा अंतोमुहुत्तूणा । * मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेद पन्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । • ६१६. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके कालमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिका पतन होते समय, अनन्तानुबन्धियोंकी विसंयोजनाकी अन्तिम फलिका संक्रम होते समय, क्षपक जीवके आठ कषायोंकी अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिका संक्रम होते समय और स्त्रीवेद व नपुंसकवेदके अन्तिम स्थितिकाण्डकके पतनके समय सूत्र में कहे अनुसार जघन्य स्थितिसंक्रम पाया जाता है। आशय यह है कि अपनी अपनी क्षपणाके समय जब इन कर्मोंके अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिका पतन होता है तब यह जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेद होता है। इस प्रकार इन कर्मोके जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेदका कथन करके अब सम्यक्त्व और लोभ संज्वलनके इस जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेदका निर्णय करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * सम्यक्त्व और लोभ संज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेद एक स्थितिप्रमाण है। ६६१७. क्योंकि दर्शनमोहकी क्षपणामें एक समय अधिक एक श्रावलिप्रमाण काल शेष रहने पर सम्यक्त्वका और सूक्ष्मसाम्पराय क्षपकके कालमें एक समय अधिक एक श्रावलिप्रमाण काल शेष रहने पर लोभ संज्वलनका अपकर्षणसंक्रमके कारण प्रकृत अद्धाच्छेद सम्भव है यह कहना चाहिये। अब शेष कोंके जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेदका निश्चय करनेके लिये आगेके सूत्रोंका निर्देश करते हैं * क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिसंक्रमअद्धाच्छेद अन्तर्मुहूर्त कम दो महीना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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