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________________ ३०४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंगो ६ ६६१३. संपहिउत्तरपयडिट्ठिदिसंकमो पत्तावसरो । तत्थ इमाणि चउवीसमणियोगदाराणि—अद्धाछेदो सव्वसंकमो णोसव्वसंकमो उकस्ससंकमो अणुकस्ससंकमो जहण्णसंकमो अजहण्णसंकमो सादियसंकमो अणादियसंकमो धुवसंकमो श्रद्धवसंकमो एयजीवेण सामित्तं कालो अंतरं गाणजीवभंगविचओ भागाभागो परिमाणं खेत्तं पोसणं कालो अंतरं सण्णियासो भावाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि। भुजगारादीणि च ४ । तत्थ दुविहो अद्धाछेदो जहण्णुकस्सटिदिसंकमविसयभेदेण । एत्थ ताव पुन्विल्लमप्पणासुत्तमवलंबणं काऊणुकस्सट्ठिदिसंकमद्धाछेदे उक्कस्सहिदिउदीरणाभंगमणुवत्तइस्सामो । तं जहादुविहो तस्स णिद्देसो ओघादेसभेदेण । ओघेण मिच्छत्त-सोलसकसायाणमुक्कस्सओ द्विदिसंकमद्धाछेदो सत्तरि-चत्तालीससागरोवमकोडाकोडीओ दोहि आवलियाहि ऊणाओ। णवणोक० उक्कस्सद्विदिसंकम०अद्धाछेदो चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ तीहि आवलियाहि परिहीणाओ'। सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सट्ठिदिसं०अद्धा० सत्तरिसागरोवमकोडा० अंतोमुहुत्तूणाओ। एवं चदुसु गदीसु । णवरि पंचिं०तिरि०अपज०मणुस०अपज० अट्ठावीसं पयडीणमुक्कस्सट्ठिदिसं०अद्धा० सत्तरि-चत्तालीसं सागरो०कोडा० अंतोमुहुत्तूणाओ । आणदादि जाव सव्वट्ठा ति सव्वासिं पयडीणमुक्कस्सट्ठिदिसं०अद्वा० अंतोकोडा० । एवं जाव० । ६१३. अब उत्तर प्रकृति स्थितिसंक्रमका कथन अवसर प्राप्त है । उसमें ये चौबीस अनुयोगद्वार होते हैं-अद्धाच्छेद, सर्वसंक्रम, नोसर्वसंक्रम, उत्कृष्टसंक्रम, अनुत्कृष्टसंक्रम, जघन्यसंक्रम, अजघन्यसंक्रम, सादिसंक्रम, अनादिसंक्रम, ध्रुवसंक्रम, अध्रुवसंक्रम, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, अन्तर, नानाजीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, सन्निकर्ष, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम। तथा भुजगार आदि चार । उनमेंसे अद्धाच्छेद दो प्रकारका है-जघन्य स्थितिसंक्रमको विषय करनेवाला और उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमको विषय करनेवाला । अब यहां पूर्वके अर्पणासूत्रका अवलम्बन लेकर उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम विषयक श्रद्धाच्छेद उत्कृष्ट स्थिति उदीरणविषयक अद्धाच्छेदके समान है यह बतलाते हैं । यथाउत्कृष्ट स्थितिसंक्रमविषयक श्रद्धाच्छेदका निर्देश दो प्रकारका है--ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघकी अपेक्षा मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अद्धाच्छेद दो आवलि कम सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण है। सोलह फ़षायोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अद्धाच्छेद दो श्रावलि कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है । तथा नौ नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अद्धाच्छेद तीन आवलि कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अद्धाच्छेद अन्तर्मुहूर्त कम सत्तर कोडाकोड़ी सागरप्रमाण है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम अद्धाच्छेद अन्तर्मुहूर्तकम सत्तर और चालीस कोड़ाकोड़ी सागर है। आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सभी प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिसंक्रम श्रद्धाच्छेद अन्तः कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिये । १. ता.श्रा प्रत्योः -कोडीहि परिहीणाश्रो इति पाउ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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