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गा० ५८ ] द्विदिसंकमे पोसणं
२८१ ६५७०. देवगदीए देवेसु उक्क० अणुक० लोग० असंखे भागो० अट्ठ-णवचोदसभागा वा देसूणा । एवं सोहम्मीसाणे । भवण०-वाण-जोदिसि० उक्क० अणुक० लोग० असंखे० भागो अधुट्ठ-अट्ठ-णवचोदस० देसूणा । सणक्कुमारादि जाव सहस्सार ति उक्क० अणुक्क० लोग० असंखे०भागो अट्टचोदस० देसूणा। आणदादि जाव अच्चुदा ति उक० खेत्तं । अणुक० लोग० असंखे०भागो छचोदस० देसूणा । उवरि खेत्तभंगो । एवं जाव०।। प्रकारके तिर्यचोंमें और तीन प्रकारके मनुष्योंमें उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंके समान बतलाया है । किन्तु उक्त तीन प्रकारके तिर्यञ्चोंमें और तीन प्रकारके मनुष्योंमें अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंके स्पर्शनमें कुछ विशेषता है । बात यह है कि इन तीन प्रकारके तिर्यंचों
और तीन प्रकारके मनुष्योंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीतकालीन स्पर्शन सब लोक है, अतः इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रमवालोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण बतलाया है। जो तिर्यञ्च या मनुष्य मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च लब्ध्यपर्याप्तकोंमें या लव्यपर्याप्त मनष्योंमें उत्पन्न होते हैं उन्हींके प्रथम समयमें मोहनीयकी उत्कष्ट स्थितिका संक्रम पाया जाता है। अब जब इनके वर्तमानकालीन और अतीतकालीन स्पर्शनका विचार करते हैं तो वह लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही प्राप्त होता है । इसीसे यहाँ इन दोनों मार्गणाओंमें उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण बतलाया है। वैसे पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यञ्चोंका और लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्योंका वर्तमानकालीन स्पर्शन लोके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीतकालीन स्पर्शन सब लोक बतलाया है जो इनके अनुत्कृष्ट स्थितिका संक्रम होते हुए सम्भव है । इसीसे यहाँ इन दोनों मार्गणाओंमें अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका वर्तमान कालीन स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीतकालीन स्पर्शन सब लोकप्रमाण बतलाया है।
५७०. देवगतिमें देवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिये। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और त्रसनोलीके चौदइ भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। आनत कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा इनमें अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इससे आगेके देवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये ।
विशेषार्थ—सामान्य देवोंका व भवनवासी आदि देवोंका जो वर्तमानकालीन व अतीतकालीन स्पर्शन बतलाया है वही यहाँ उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक उक्त देवोंका स्पर्शन जानना चाहिये जो मूलमें बतलाया ही है । अन्तर केवल आनतादिक चार कल्पोंके देवोंमें उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंके स्पर्शनमें है । बात यह है कि आनतादिक चार कल्पोंमें जो स्वयोग्य उत्कृष्ट
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