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________________ २७८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ मणुसेसु उक्क० संखेज्जा। अणु० असंखेज्जा। एवमाणदादि जाव अवराइदा ति । मणुसपजत्त-मणुसिणीसु सव्वढे च उक्कस्साणुक० संका० संखेज्जा । एवं जाव० । ६५६४. जह० पयदं । दुविहो णिद्देसो-अोघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० द्विदिसं० केत्तिया ? संखेज्जा । अज० अणंता । आदेसेण णेरड्य० जह० अज० असंखेज्जा। एवं पढमाए । सत्तमाए च एवं चेव । सव्वपंचिंतिरि०-मणुसअपज्ज०देवगईए देवा भवण० वाणवेंतरे त्ति विदियादि जाव छट्टि ति जह० संखेज्जा, अज० असंखेज्जा । एवं मणुस-जोइसियादि जाव अवराइद त्ति । तिरिक्खेसु जह० अज० अणंता । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सवढे च जह० अज० संखेजा । एवं जाव० । ५६५. खेत्तं दुविहं-जह विसयमुक्क विसयं च । उक्कस्सए पयदं । दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० द्विदिसं० केव०१ लोगस्स असंखे भागे । अणु० सबलोगे । एवं तिरिक्खोघो। सेसगइमग्गणाभेदेसु उक्क० अणुक्क० लोग० असंख०भागे। एवं जाव० । उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका परिमाण जानना चाहिये। मनुष्यों में उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार आनत कल्पसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें जानना चाहिये । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकोंका परिमाण संख्यात है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । ५६४. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य स्थितिके संक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। अजघन्य स्थितिके संक्रामक जीव अनन्त हैं । आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें जघन्य और अजघन्य स्थितिके संक्रामक जीव असंख्यात हैं। पहली और सातवीं पृथिवीमें इसी प्रकार जानना चाहिये । तथा सब पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त, देवगतिमें सामान्य देव, भवनवासी देव और व्यन्तर देवोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिये । दूसरी से लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें जघन्य स्थितिके संक्रामक जीव संख्यात हैं और अजघन्य स्थितिके संक्रामक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार सामान्य मनुष्य और ज्योतिषी देवोंसे लेकर अपराजित तकके देवों में जानना चाहिये । तिर्यञ्चोंमें जघन्य और अजघन्य स्थितिके संक्रामक जीव अनन्त हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें जघन्य और अजघन्य स्थितिके संक्रामक जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। ६५६५. क्षेत्र दो प्रकारका हैं-जघन्य स्थितिके संक्रामकोंसे सम्बन्ध रखनेवाला और उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामकों से सम्बन्ध रखनेवाला । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैशोधनिर्देश और आदेशनिर्देश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भाग क्षेत्रमें रहते हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव सब लोकमें रहते हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिये । तथा गति मार्गणाके शेष जितने भेद हैं उनमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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