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________________ गा० ५८ ] २७७ जह०-उक्क० ९५६१. भागाभा० दुविहो ट्ठिदिसंका ० विसयभेदेण । उक्कसे तव पदं । दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० हिदिसंकामया सव्वजीवाणं केव० भागो ? अनंतिमभागो । अणु० ट्ठिदिसंका० सव्वजी ० केव० भागो ? अनंता भागा । एवं तिरिक्खोघं आदेसेण णेरइय० उक्क० डिदिसं० सगसव्वजी० के० ? असंखे० भागो । अणु० असंखेजा भागा। एवमसंखेजरासीणं । संखेजरासीणं पि एवं चेव । णवरि सगपडिभागिओ भागो कायव्वो । एवं जाव० । $ ५६२. जह० पदं । दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० ट्ठिदिसं० सव्वजीवाणं केव० भागो ? उक्कस्सभंगो । अज० अणुक्कस्तभंगो | एवं सव्वत्थ गदिमग्गणा । णवरि तिरिक्खेसु णारयभंगो । एवं जा० । ९५६३. परिमाणं दुविहं - जह० उक्क० । तत्थुक्कस्सए पयदं । दुविहो णिद्देसोओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० ट्ठिदिसं० केत्तिया ? असंखेज्जा । अणु० अनंता । एवं तिरिक्खोघो । आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अणुक्क० असंखेजा । एवं सव्वणेरइय० -सव्व पंचिंदियतिरिक्ख० मणुस ० अपज्ज० - भवणादि जाव सहस्सार ति । हिदिकमे भागाभागो 8 ५६१. भागाभाग दो प्रकारका है - जघन्य स्थितिसंक्रमविषयक और उत्कृष्ट स्थितिसंक्रमविषयक । सर्वप्रथम उत्कृष्टका प्रकरण है । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है— ओघ निर्देश और आदेशनिर्देश | ओघ की अपेक्षा मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट स्थिति के संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं । इसीप्रकार सामान्य तिर्यंचों में भागाभाग जानना चाहिये । आदेशकी अपेक्षा नारकियों में उत्कृष्ट स्थिति के संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव सब जीवोंके असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । जिन राशियोंकी संख्या असंख्यात है उनका इसी प्रकार भागाभाग जानना चाहिये । तथा जिन राशियों की संख्या संख्यात है उनका भी इसी प्रकार भागाभाग जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ अपने प्रतिभाग के अनुसार भागाभाग प्राप्त करना चाहिये। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिये । 1 $ ५६२. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ओकी अपेक्षा मोहनीय की जघन्य स्थितिके संक्रामक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? इनका भागाभाग उत्कृष्ट के समान है । अजघन्य स्थिति के संक्रमंकों का भागाभाग अनुत्कृष्टके समान है । इसी प्रकार सर्वत्र गतिमार्गणा में जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि तिर्यश्र्चों में भागाभाग नारकियोंके समान है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गेणा तक जानना चाहिये । $ ५६३. परिमाण दो प्रकारका है—जवन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीय की उत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके संक्रामक जीव अनन्त हैं । इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चों में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति संक्रामकों का परिमाण जानना चाहिये । आदेशकी अपेक्षा नारकियोंमें मोहनीयकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के संक्रामक जीव असंख्यात हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पंचेन्द्रिय तिर्यश्न, मनुष्य अपर्याप्त और भवनवासी देवोंसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवोंमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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