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________________ २५१ गा० ५८] द्विदिसंकमे उक्कडणामीमांसा ६५१३. एवमेदं परूविय संपहि जहण्णुक्कस्सणिक्खेवाइच्छावणादिपदाणमप्पाबहुअणिण्णयं कुणमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ * तदो सव्वत्थोवो जहएणो णिक्खेवो । ५१४. आवलियतिभागपमाणत्तादो । * जहरिणया अइच्छावणा दुसमयूणा दुगुणा । ५१५. जहण्णाइच्छावणा णाम आवलियवे-तिभागा। तदो तत्तिभागादो वे-तिभागाणं दुगुणत्तं होउ णाम, विरोहाभावादो। कथं पुण दुसमयूणत्तं ? उच्चदेआवलिया णाम कदजुम्मसंखा । तदो तिभागं सुद्धं ण एदि त्ति रूवमवणिय तिभागो घेत्तव्यो, तत्थावणिदरूवेण सह तिभागो जहण्णणिक्खेवो वे-तिभागा अइच्छावणा। एदेण कारणेण समयाहियतिभागे दुगुणिदे जहण्णाइच्छावणादो दुरूवाहियमुप्पजइ । तम्हा दुसमयूणा दुगुणा त्ति सुत्ते वुत्तं । होता है, उन सम्बन्धी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कीरण कालके उपान्त्य समय तक अपकषित होनेवाले द्रव्यको निक्षेप अपने नीचेकी एक आवलिप्रमाण स्थितियोंको अतिस्थापित कर शेष सब स्थितियों में होता है । तथा उत्कृष्ट अतिस्थापना एक समय कम काण्डकप्रमाण होती है जो कि स्थितिकाण्डककी अग्र स्थितिकी जाननी चाहिये, क्योंकि जिस समय स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालिका पतन होता है उस समय काण्डकके अन्तर्गत स्थित स्थितियोंमें अपकर्षित होनेवाले द्रव्यका निक्षेप होना सम्भव नहीं है । कारण कि उस समय उनका अभाव हो जाता है। इस प्रकार निर्व्याघात और व्याघातविषयक निक्षेप और प्रतिस्थापना कहाँ कितनी प्राप्त होती है इसका संक्षेपमें विचार किया। 6५३. इस प्रकार अपकर्षणका कथन करके अब जघन्य और उत्कृष्ट निक्षेप तथा जघन्य और उत्कृष्ट अतिस्थापना आदि पदोंके अल्पबहुत्वका निर्णय करते हुए आगेका सूत्र कहते हैं * जघन्य निक्षेप सबसे स्तोक है। ६५१४. क्योंकि वह आवलिके तीसरे भागप्रमाण है । * उससे जघन्य अतिस्थापना दो समय कम दूनी है। ६५१५. शंका-जघन्य अतिस्थापना एक आवलिके दो बटे तीन भागप्रमाण होती है, इसलिये एक आवलिके तीसरे भागसे दो बटे तीन भाग दूना भले ही रहा आवे, क्योंकि इसमें कोई विरोध नहीं है । किन्तु वह दूनेसे दो समय कम कैसे हो सकती है ? समाधान-आवलिकी परिगणना कृतयुग्म संख्यामें की गई है, इसलिये उसका शुद्ध तीसरा भाग नहीं आता है, अतः आवलिमेंसे एक कम करके उसका तीसरा भाग ग्रहण करना चाहिये । अब यहां आवलिमें से जो एक कम किया गया है उसको त्रिभागमें मिला देने पर जघन्य निक्षेप होता है और एक कम आवलिका दो बटे तीन भागप्रमाण अतिस्थापना होती है। इस कारणसे एक समय अधिक त्रिभागको दूना करने पर जघन्य अतिस्थापनासे यह संख्या दो अधिक पाई जाती है । इसी कारण सूत्र में निक्षेपकी अपेक्षा अतिस्थापनाको दो समय कम दूनी कहा है। उदाहरण-श्रावलि १६, १५-१-१५, १५+३=५; ५+ १ = ६ जघन्य निक्षेप । १६-६=१० जघन्य अतिस्थापना; या ६+२=१२-२१० जघन्य अतिस्थापना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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