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________________ ૨૦ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ माणीए अइच्छावणाबहिब्भावदसणादो । 8 एसा उक्कस्सिया अइच्छावणा वाघादे । ५१२. एसा अणंतरपरूविदा समयणुकस्सद्विदिखंडयमेत्ती उक्कस्साइच्छावणा वाघादे द्विदिखंडयविसए चेव होइ, णाण्णत्थे त्ति उत्तं होइ । स्थितिकी एक समयकम उत्कृष्ट काण्डकप्रमाण अतिस्थापना होती है यह सिद्ध हुआ। शंका-इस अतिस्थापनाको एक समय कम क्यों कहा ? समाधान-क्योंकि अपकर्षणको प्राप्त होनेवाली अप्रस्थिति अतिस्थापनासे बहिर्भूत देखी जाती है। * यह उत्कृष्ट अतिस्थापना व्याघातके होनेपर होती है। १५१२. यह जो पहले एक समयकम उत्कृष्ट स्थितिकाण्डप्रमाण उत्कृष्ट अतिस्थापना कही है वह स्थितिकाण्डकविषयक व्याघातके होनेपर ही होती है, अन्यत्र नहीं होती यह उक्त कथनका तात्पर्य है। विशेषार्थ-यहाँ स्थितिसंक्रमके विषयमें विचार करते हुए सर्व प्रथम स्थितिअपकर्षणके स्वरूपका निर्देश किया गया है। स्थितिके घटनेको स्थितिअपकर्षण कहते हैं । यह स्थिति अपकर्षण अव्याघात और व्याघातके भेदसे दो प्रकारका है। स्थितिकाण्डक घातके बिना जो स्थिति घटती है वह अव्याघातविषयक स्थितिअपकर्षण है और स्थितिकाण्डकघातके द्वारा इसके अन्तिम समयमें जो स्थिति घटती है वह व्याघातविषयक स्थितिअपकर्षण है। स्थिति उत्कीरणकाल यद्यपि अन्तमुहूर्तेप्रमाण है तथापि यह व्याघातविषयक स्थिति अपकर्षण उसके अन्तिम समयमें ही प्राप्त होता है, क्योंकि स्थितिकाण्डकसम्बन्धी सम्पूर्ण स्थितिका पात अन्तिम समयमें ही देखा जाता है। अतएव स्थितिकाण्डकके उत्कीरणकालके अन्तिम समयके सिवा शेष सब समयों में जो अपकर्षण होता है उसे अव्याघातविषयक स्थितिअपकर्षण जानना चाहिये। अब इन दोनों अवस्थाओंमें होनेवाले स्थितिअपकर्षणमें निक्षेप और अतिस्थापनाका प्रमाण बतलाते हैं। उत्कर्षित या अपकर्षित द्रव्यको ग्रहण करनेके योग्य जिन स्थितियोंमें उत्कर्षित या अपकर्षित द्रव्यका पतन होता है उनकी निक्षेप संज्ञा है । तथा उत्कर्षण और अपकर्षणको प्राप्त होनेवाली स्थितियों और निक्षेपके मध्यमें स्थित जिन स्थितियोंमें उत्कर्षित या अपकर्षित द्रव्यका निक्षेप नहीं होता है उन स्थितियोंकी अतिस्थापना संज्ञा है । अव्याघात विषयक अपकर्षणके समय जघन्य निक्षेप एक समय कम आवतिका एक समय अधिक विभाग प्रमाण है। यह निक्षेप उदयावलिसे उपरितन प्रथम समयवर्ती स्थितिका अपकर्षण होने पर प्राप्त होता है। उत्कृष्ट निक्षेप एक समय अधिक दो आवलिसे न्यून उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है, क्योंकि उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करके बन्धावलिके बाद अग्रस्थितिका अपकर्षण होने पर उक्तप्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप पाया जाता है । इसी प्रकार प्रकृतमें जघन्य अतिस्थापना एक समय कम आवलिके दो बटे तीन भागप्रमाण है, क्योंकि उदयावलिके उपरितन प्रथम समयवर्ती स्थितिका अपकर्षण होने पर उक्त प्रमाण अतिस्थापना देखी जाती है। तथा श्रव्याघातविषयक उत्कृष्ट अतिस्थापना एक आवलिप्रमाण है, क्योंकि उदयावलिके ऊपर एक समय कम आवलिके त्रिभागसे लेकर आगे जितनी भी स्थितियोंका अव्याघातविषयक अपकर्षण होता है वहाँ सर्वत्र एक आवलिप्रमाण अतिस्थापना देखी जाती है। मात्र स्थितिकाण्डकघातके समय जघन्य अतिस्थापना सर्वत्र एक आवलिप्रमाण होती है, क्योंकि स्थितिकाण्डकघातके समय जितनी स्थितियोंका अपकर्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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