SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ ४८९. अंतराणु० दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण संखे०गुणवड्डि-हाणिअंतरं जह० एयस० अंतोमु०, उक० उवड्डपोग्गलपरियट्ट । सेसं भुज०भंगो। णवरि मणुस०३ संखे०गुणवड्डि-हाणीणं जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० पुन्वकोडिपुधत्तं । ___ ४९०. णाणाजी० भंगविचओ भागाभागो परिमाणं खेत्तं पोसणं च भुज०भंगो । णवरि संखे०गुणवड्डि-हाणिगयविसेसो सव्वत्थ जाणियब्यो । ४९१. कालो भुज० भंगो। णवरि गुणवड्डी हाणी जह० एयसमओ, उक्क० संखेजा समया। ६ ४९२. अंतरं भुज भंगो। णवरि संखे०गुणवड्डी जह० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । संखे०गुणहाणी जह० एयसमओ, उक्क० छम्मासं । एवं मणुसतिए । णवरि मणुसिणी० संखेगुणहाणी उक्क० वासपुधत्तं । ४९३. भावो सव्वत्थ ओदइओ० । ४९४. अप्पाबहुअाणु० दुविहोणि०–ोघेण आदेसेण य । अोघेण सव्वत्थोवा अवत्त संका । संखे०गुणवड्डिसंका० संखे०गुणा। संखे०गुणहाणिसंका० संखे०गुणा । 5 ४८६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघकी अपेक्षा संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । तथा दोनोंका उत्कृष्ट अन्तर उपार्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। शेष भङ्ग भुजगारके समान है । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिको संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है। ४६०. नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, परिमाण, क्षेत्र और स्पर्शन इनका कथन भुजगारके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धि और संख्यातगुणहानिगत विशेषताको सर्वत्र जान लेना चाहिये । ___४६१. कालका भंग भुजगारके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि गुणवृद्धि और गुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ६४६२. अन्तरका भंग भुजगारके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। संख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें संख्यातगुणहानिका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। ६४६३. भाव सर्वत्र औदयिक है। ३४६४. अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघकी अपेक्षा अवक्तव्यपदके संक्रामक जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे संख्यातगुणवृद्धि के संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यातगुणहानिके संक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy