________________
गा० २३]
खेत्तादिसंकमसरूवणिद्देसो $ २२. संपहि णिक्खेवत्थविहासणट्ठमुवरिमं पबंधमाहॐ गोमागमदो दव्वसंकमो ठवणिज्जो ।
$ २३. एत्थ णाम-ठ्ठवणा संकमा आगमदो दव्वसंकमो च सुगमा त्ति ण परूविदा । णोआगमदव्वसंकमो पुण ताव ठवणिजो, तस्स पयदत्तादो बहुवण्णणिजत्तादो च । एवमेदं ठविय संपहि खेत्तसंकमसरूवपरूवणमुत्तरसुत्तं भणइ
* खेत्तसंकमो जहा उड़लोगो संकेतो।
२४. एत्थ 'खेत्तसंकमो जहा' त्ति आसंकिय 'उड्ढलोगो संकेतो' ति तस्स सरूवणिद्देसो कओ। उड्डलोगणिद्देसेण तत्थ ट्ठियजीवाणमिह गहणं कायव्वं, अण्णहा उड्ढलोगस्स संकंतिविरोहादो। उड्डलोगट्ठियदेवेसु इहागदेसु उड्ढलोगसंकमो जादो त्ति भावत्थो।
* कालसंकमो जहा संकतो हेमंतो।
5 २५. जो सो पुब्वमइकतो हेमंतो सो पडिणियत्तिय आगदो त्ति भणियं होइ । कथमइकंतस्स पुणरागमो त्ति णासंकणिजं, सारिच्छसामण्णावेक्खाए अइकंतस्स वि तस्स पुणरागमणं पडि विरोहाभावादो। अथवा वरिसयालपजाएणावडिओ जो कालो
६ २२. अब निक्षेपोंके अर्थका विशेष व्याख्यान करनेके लिये आगेके प्रबन्धका निर्देश करते हैं
* नोआगमद्रव्यसंक्रमका कथन स्थगित करते हैं ।
६२३. नामसंक्रम, स्थापनासंक्रम और आगमद्रव्यसंक्रमका विवेचन सुगम है, इसलिए यहाँ उनका कथन नहीं किया। अब इसके आगे नोआगमद्रव्यसंक्रमका कथन करना चाहिये था किन्तु वह प्रकरण प्राप्त है और उसका बहुत वर्णन करना है इसलिये उसका कथन स्थगित करते हैं। इस प्रकार इसे स्थगित करके अब क्षेत्रसंक्रमके स्वरूपका निर्देश करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* क्षेत्रसंक्रम यथा-ऊर्ध्वलोक संक्रान्त हुआ।
६२४. यहाँ पर क्षेत्रसंक्रम जैसे ऐसी आशंका करके 'उड्डलोगो संकेतो' इस पदद्वारा उसके स्वरूपका निर्देश किया है। सूत्रमें जो 'ऊर्ध्वलोक' पदका निर्देश किया है सो उससे ऊर्ध्वलोकमें स्थित जीवोंका ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा ऊर्ध्वलोकका संक्रमण होने में विरोध आता है। ऊर्ध्वलोकमें स्थित देवोंके यहाँ आनेपर वह ऊर्ध्वलोकका संक्रम कहलाता है यह इस सूत्रका भावार्थ है।
* कालसंक्रम यथा-हेमन्त ऋतु संक्रान्त हुई । ____$२५. जो हेमन्त ऋतु पहले निकल गई थी वह पुनः लौट आई, यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
शंका-व्यतीत हुई हेमन्त ऋतुका फिरसे लौट आना कैसे सम्भव है ?
समाधान-ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि सादृश्यसामान्यकी अपेक्षा अतीत हुई हेमन्त ऋतुका फिरसे आगमन माननेमें कोई विरोध नहीं आता। अथवा जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org