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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ कालभंतरे एदेसि संभवं पडि विरोहाभावादो। * सहस्स णामं भावो य । २१. कुदो ? सुद्धपज्जवट्ठियणए एदम्मि सेसणिक्खेवाणमसंभवादो। कथमेत्थ णामणिक्खेवस्स संभवो ? ण, सद्दपहाणे एदम्मि तदत्थित्तं [ पडि विरोहाभावादो]। णिक्खेवणयपरूवणा गया। समाधान-नहीं, क्योंकि वर्तमान कालके भीतर इन संक्रमोंका सद्भाव होनेमें कोई विरोध नहीं आता है। * नामसंक्रम और भावसंक्रम ये शब्दनयके विषय हैं। ६ २१ क्योंकि शब्दनय शुद्ध पर्यायाथिंकनय है, इसलिये इसमें शेष निक्षेप असम्भव हैं। शंका-इसमें नामनिक्षेप कैसे सम्भव है ? समाधान-नहीं, क्योंकि यह नय शब्दप्रधान है, इसलिये इसमें नामनिक्षेप है ऐसा स्वीकार कर लेनेमें कोई विरोध नहीं आता है । विशेषार्थ-यहाँ संक्रमको नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन छह निक्षेपोंमें घटित करके उनमेंसे किस निक्षेपको कौन नय विषय करता है यह बतलाया है । मुख्य नय पाँच हैंनैगम; संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द । जो संकल्प मात्रको ग्रहण करता है वह नैगमनय है इत्यादि रूपसे नैगमनयके अनेक लक्षण है । किन्तु यहाँ जो केवल द्रव्य या केवल पर्यायको, बिषय न करके दोनोंको विषय करता है वह नैगमनय है, नैगमनयका ऐसा लक्षण स्वीकार कर लेनेसे सभी निक्षेप उसके विषय हो जाते हैं । इसीसे चूर्णिसूत्रकारने नैगमनय सब निक्षेपोंको स्वीकार करता है यह कहा है। यद्यपि संग्रहनय अभेदवादी है और संक्रम दो के बिना अर्थात् भेदके बिना बन नहीं सकता. इसलिये शुद्ध संग्रहका एक भी सक्रम विषय नहीं है। तथापि कालभेदके सिवा शेष सब भेद अभेददृष्टिसे अशुद्ध संग्रहके विषय हो सकते हैं, इस लिये कालसंक्रमके सिवा शेष सब संक्रम संग्रहनयके विषय बतलाये हैं। अब यहाँ दो प्रश्न होते हैं। प्रथम तो यह कि और भेदोंके समान कालभेद संग्रहनयका विषय क्यों नहीं है और दूसरा यह कि भावसंक्रम पर्यायरूप होनेके कारण वह संग्रहनयका विषय कैसे हो सकता है ? इन दोनों प्रश्नोंका क्रमसे समाधान यह है कि ऐसा नियम है कि वस्तुमें जहाँ तक द्रव्यादि रूपसे भेद हो सकते हैं वहाँ तक वे दृष्टिभेदसे संग्रह और व्यवहारनयके विषय हैं और जहांसे कालभेद चालू हो जाता है वहांसे वे ऋजुसूत्रके विषय होते हैं। यतः कालसंक्रम कालभेदके बिना हो नहीं सकता, अतः इसे संग्रहनयका विषय नहीं माना है। अब भावनिक्षेप संग्रहनयका विषय क्यों है इसका विचार करते हैं-यद्यपि भाव और पर्याय ये एकार्थवाची शब्द हैं किन्तु द्रव्यके बिना केवल पर्याय नहीं पाई जाती। आशय यह है कि पर्यायसे उपलक्षित द्रव्य ही भाव कहलाता है, अतः इस विवक्षासे भावसंक्रम भी संग्रहनयका विषय माना गया है । व्यवहारनय भेदवादी है। पर यह भी कालभेदको स्वीकार नहीं करता और एक कालमें संक्रम बन नहीं सकता, इसलिये कालनिक्षेप व्यवहारनयका भी विषय नहीं माना गया है। किन्तु शेष द्रव्यादि भेद व्यवहार नयमें बन जाते हैं, अतः कालसंक्रमके सिवा शेष सब संक्रम ब्यवहारनयके भी विषय बतलाये गये हैं। ऋजुसूत्रनय वर्तमान पर्यायवादी है, इसलिये इसके रहते हुए जो निक्षेप सम्भव हैं वे ऋजुसूत्रके विषय हो सकते हैं शेष नहीं । शब्दनयके विषय नाम और भावनिक्षेप हैं यह स्पष्ट ही है। इस प्रकार कौन निक्षेप किस नयके विषय हैं इसका कथन समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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