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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ सो तं छंडियूण हेमंतसरूवेण परिणदो त्ति एदस्स अत्थो वत्तव्यो। संपहि आगम- . भावसंकममुवजुत्ततप्पाहुडजाणयविसयं सुगमत्तादो अपरूविय णोआगमभावसंकम- . परूवणट्ठमाह 9 भावसंकमो जहा संकंतं पेम्मं । २६. एत्थ पेम्मस्स जीवपजायत्तादो पत्तभावववएसस्स विसयंतरसंकंती भावसंकमो त्ति घेत्तव्यो । प्रसिद्धश्चायं व्यवहारः, तथा हि वक्तारो भवन्ति संक्रान्तमस्य प्रेमान्यत्रामुष्मादिति । जो सो पोआगमदो दव्वसंकमो सो दुविहो कम्मसंकमो च णोकम्मसंकमो चं। २७. जो सो पुव्वं ठविदो णोआगमदव्वसंकमो सो दुवियप्पो कम्म-णोकम्मभेएण, तदुभयवदिरित्तणोआगमदव्वस्साणुवलंभादो। तत्थ पढमस्स बहुवण्णणिज्जत्तादो पयदत्तादो च कममुलंधिय थोववत्तव्वमेव ताव णोकम्मदव्वसंकमं णिदरिसणमुहेण परूवेइ-- पोकम्मसंकमो जहा कसंकमो। २८. कधमसंकेताणं कठ्ठदव्वाणमेत्थ संकमववएसो ? न, संक्रम्यतेऽनेन काल वर्षाकालरूपसे अवस्थित था वह वर्षाकालको छोड़कर हेमन्त रूपसे परिणत हो गया, यह इस सूत्रका अर्थ कहना चाहिये। जो संक्रमप्राभृतका ज्ञाता है और उसके उपयोगसे युक्त है वह आगमभावसंक्रमप्राभृत है। यतः यह सुगम है अतः इसका कथन न करके अब नोआगमभावसंक्रमका कथन करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं * भावसंक्रम यथा--प्रेम संक्रान्त हुआ। ६२६. यहाँ जीवकी पर्याय होनेसे प्रेमका भावरूपसे निर्देश किया है। उसका अन्य विषयरूपसे संक्रमण करना भावसंक्रम है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये। जैसे कि लोकमें यह व्यवहार प्रसिद्ध है और वक्ता भी ऐसा कहते हैं कि इसका इससे प्रेम हट कर अन्यत्र संक्रान्त हो गया है। * जो नोआगमद्रव्यसंक्रम है वह दो प्रकारका है—कर्मसंक्रम और नोकर्मसंक्रम। २७. जो पहले नोआगमद्रव्यसंक्रम स्थगित कर आये हैं वह कर्म और नोकर्मके भेदसे दो प्रकारका है, क्यों कि इन दोके सिवा और नोआगमद्रव्य नहीं पाया जाता। उनमेंसे जो पहला कर्मनोआगमद्रव्यसंक्रम है उसका वर्णन बहुत है और उसका प्रकरण भी है अतः क्रमको छोड़कर जिसके विषयमें थोड़ा कहना है ऐसे नोकर्मद्रव्यसंक्रमका ही उदाहरणद्वारा कथन करते हैं * नोकमनोआगमद्रव्यसंक्रम यथा--काष्ठसंक्रम । २८. शंका-काष्ठ द्रव्योंका संक्रमण तो होता नहीं, अर्थात् एक लड़की दूसरी १. ताप्रतौ कम्मसंकमो च णोकम्मसंकमो, प्रा० प्रतौ कम्मसंकमो णोकन्मसंकमो च इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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