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________________ गा०५८ ] पयडिसंकमट्ठाणाणं एयजीवेण कालो १८७ उक्कस्सेणंतोमुहुत्तपरूवणाए णिदरिसणं-एगो दंसणमोहक्खवओ मिच्छत्तं खविय सम्मामिच्छत्तखवणद्धाए वावीससंकामओ जादो जाव चरिमफालिपदणसमओ त्ति एसो च कालो अंतोमुहत्तमेत्तो। ३६८. संपहि वीसाए उच्चदे। तं जहा–तत्थ जहण्णेणेगसमओ त्ति उत्ते एको इगिवीससंकामओ उवसमसेढिं चढिय लोभस्सासंकामगो होदण एयसमयं वीससंकममणुपालिय तदणंतरसमयम्मि कालं काऊण देवेसुववन्जिय इगिवीससंकामओ जादो । लद्धो एयसमओ। उकस्सेणंतोमुहुत्तमिदि उत्ते एको इगिवीससंतकम्मिओ णवंसयवेदोदएण उवसमसेटिं चढिय अंतरकरणं कादणाणुपुव्वीसंकमवसेण वीसाए संकामओ जादो । तदो तस्स णqसयवेदोवसमणकालो सव्वो चेय पयदुक्कस्सकालो होइ । ३६९. संपहि एगूणवीससंकमट्ठाणस्स जहण्णुकस्सकालणिण्णयं कस्सामो । तं जहा-इगिवीससंतकम्मिओ उवसमसेढीमारूढो अंतरकरणं समाणिय णउंसयवेदमुवसामिऊण ऊणवीसाए संकामओ जादो। विदियसमए कालगओ देवेसुववण्णो इगिवीससंकामओ जादो तस्स लद्धो एगसमओ। तस्सेव णqसयवेदमुवसामिय इत्थिवेदोवसामणावावदस्स तदुवसामणकालो सव्वो चेय पयदुक्कस्सकालो होइ त्ति वत्तव्वं ।' सम्यग्मिथ्यात्वका क्षय होनेके कालमें अन्तिम फालिके पतनके समय तक बाईस प्रकृतिक संक्रमस्थानका स्वामी रहा उसके यह काल अन्तर्मुहूर्त होता है। इसीसे बाईस प्रकृतिक संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। ३६८. अब बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानके कालका विचार करते हैं। यथा-उसमें भी जो जघन्य काल एक समय कहा है उसका खुलासा करते हैं-कोई एक इक्कीस प्रकृतियों का संक्रामक जीव उपशमश्रेणि पर चढ़कर और लोभका असंक्रामक होकर एक समय तक बीस प्रकृतियोंके संक्रमको प्राप्त हुआ। पुनः तदनन्तर समयमें मरा और देव होकर इक्कीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार बीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो गया । अब जो उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है उसका खुलासा करते हैं-कोई एक इक्कोस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव नपुंसकवेदके उदयसे उपशमश्रेणि पर चढ़ा । पुनः अन्तरकरण करके आनुपूर्वी संक्रमके वशसे वह बीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। अनन्तर उसके नपुसकवेदके उपशम करनेका जितना काल है वह सब प्रकृत स्थानका उत्कृष्ट काल है । ६३६६. अब उन्नीस प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका निर्णय करते हैं। यथा-कोई एक इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव उपशमश्रेणि पर चढ़ा। फिर अन्तरकरण करके और नपुंसकवेदका उपशम करके उन्नीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। तथा दूसरे समयमें मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ और इक्कीस प्रकृतियोंका संक्रामक हो गया। इस प्रकार इसके उन्नीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ। तथा वही जीव जब नपुसकवेदका उपशम करके स्त्रीवेदका उपशम करने लगता है तब स्त्रीवेदके उपशम करनेमें जितना काल लगता है वह सब प्रकृत स्थानका उत्कृष्ट काल होता है ऐसा यहाँ कहना चाहिये । १. ता०प्रतौ घेत्तव्वं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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