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________________ गा० ४०-४१] मग्गणट्ठाणेसु संकमट्ठाणादिपरूवणा १४७ २९९. एवमेदीए गाहाए संकमट्ठाणाणं मग्गणोवायभूदाणि अत्थपदाणि परूविय संपहि संकम-पडिग्गह-तदुभयट्ठाणाणमादेसपरूवणटुं गदियादिचोद्दसमग्गणट्ठाणाणि परूवेमाणो गाहासुत्तमुत्तरं भणइ–'एक्के कम्हि य ठाणे०' एक्के कम्हि ठाणे संकम-पडिग्गह-तदुभयभेदभिण्णे गदियादिचोदसमग्गणट्ठाणविसेसिदजीवाणं गवसणे कीरमाणे तत्थ केसु द्वाणेसु भवसिद्धिया जीवा होति, केसु वा द्वाणेसु अभवसिद्धिया जीवा होति, सेसमग्गणट्ठाणविसेसिदा वा जीवा केसु हाणेसु होति त्ति पुच्छा कदा भवदि । एवमेदीए गाहाए भवियाभवियमग्गणाणं णामणिदेसं कादूण सेसमग्गणाणं च 'जीवा वा' इदि एदेण सामण्णवयणेण संगहो कदो दट्टयो । एत्थ भवियाभवियजीवेसु आनुपूर्वी अनापूनुर्वी २१ प्र. उपशा०२४प्र० उपशा० | क्षपक | उपश० श्रेणिसे | उपशमश्रेणिसे संक्र० प्रति०] संक्र० प्रति० | संक्र० प्रति० | संक० प्रति० पड़नेवाला २४प्र० पड़नेवाला२१प्र० २०......" २२७ २......१ १२..." | २७...२२,१९ ४.......३ १५,११ १९..." २६." , १८....४ २५२१,१७ ह.....३ १२ ""४ १४......६ २३२२,१६/ १४..."६ १२"""" १५.११. ११.......४ | १३.......६३५ २२.१८,१४ २१""""७ ११ """ ५ ''''' ४......"४ ३....३ २१""२१,१७/ २२""७ । २० १३९,५ ..."३वर १०......"४ १. ...१ २३...७, ११ | २१....... ६........२ ५"..."२वश ३ . "१ ५२ २......" ६२९९. इस प्रकार इस गाथा द्वारा संक्रमस्थानोंके अन्वेषणके उपायभूत अर्थपदोंका कथन करके अब संक्रमस्थानों, प्रतिग्रहस्थानों और तदुभयस्थानोंका आदेशकी अपेक्षा कथन करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-अब 'एक्के कम्हि य द्वाणे०' इस द्वारा संक्रम, प्रतिग्रह और तदुभय. रूप भेदोंसे अनेक भेदोंको प्राप्त हुए एक एक स्थानमें गति आदि चौदह मार्गणाओंवाले जीवोंका विचार करने पर उनमेंसे किन स्थानोंमें भव्य जीव होते हैं, किन स्थानोंमें अभव्य जीव होते हैं और किन स्थानोंमें शेष मार्गणावाले जीव होते हैं यह पृच्छा की गई है। इस प्रकार इस गाथामें भव्य और अभव्य मार्गणाका नाम निर्देश करके शेष मार्गणाओंका 'जीवा वा' इस सामान्य वचनद्वारा संग्रह किया गया है ऐसा जानना चाहिये । इस गाथामें भव्य और अभव्य जीवोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001414
Book TitleKasaypahudam Part 08
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages442
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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