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________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सण्णियास परूवणा ६६ अज० C $ १०५. इथिवेद ० जह० पदेसविहत्तिओ मिच्छत्त- बारसक०-३ -अद्वणोक० नियमा असंखे ० भागन्भहि० । सम्म० - सम्मामि० - अनंताणु० चउक्क० णियमा अज० असंखं ० गुण भहिया । एवं पुरिस - णवंसयवेदाणं । णबुंसयवेदे जहण्णे संते मिच्छतस्स असंखे ० भागन्भहियत्तं होदु णाम, पुरिसवेदे पुण जहण्णे संते मिच्छत्तस्स असंखे ०गुणन्भहियतं मोत्तूण णासंखेज्जभागव्भहियत्तं, सम्मतं घेत्तूण तेत्तीससागरोवममेत्तकालं बंधे विणा अवदत्तादो त्ति ? ण, तेत्तीस सागरोवमाणि सम्मत्तगुणेण अवदिस्स मिच्छत्तदव्वं पि पुरिसवेद जहण्णसंतकम्पिय भिच्छत्तदव्वादो असंखे० भागहीणं चैव । एदस्साइरियस्स उपदेसेण गुणिद- खविदकम्मं सिएस चरिमणिसेगप्पहुडि विसेसहीणकमेण हेा जाव समयाहियआवाहा त्ति हिदि पडि पदेसावद्वाणादो । कुदो एवं road ? एदम्हादो चेव सष्णियासादो | अणुलोम-विलोमपदेसरयणासु का एत्थ सच्चिल्लिया ण णव्वदे आणाकणिद्वदाए तेण दोण्हमु एसाणमेत्थ संगहो कायव्वो । $ १०६. हस्सस्स जह० पदेसविहत्तिओ मिच्छत्त ० - बारसक० सत्तणोक ० णियमा अज० असंखे० भागन्भहिया । सम्म० सम्मामि० - अनंताणु ० चक्क० नियमा $ १०५. स्त्रीवेदकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिध्यात्व, बारह कषाय और आठ नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो संख्या गुणी अधिक होती है। इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुसंवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिये । शंका – नपुसंकवेदके द्रव्यके जघन्य रहने पर मिध्यात्वका द्रव्य असंख्यातवें भाग अधिक होवे, परन्तु पुरुषवेदके द्रव्यके जघन्य रहने पर मिथ्यात्वका द्रव्य असंख्यातगुण अधिकको छोड़ कर असंख्यातवें भाग अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि सम्यक्त्वको ग्रहण करके तेतीस सागर प्रमाण काल तक बन्धके विना वह अवस्थित रहता है । समाधान — नहीं, क्योंकि तेतीस सागर काल तक सम्यक्त्व के साथ अवस्थित रहनेवाले जीवके जो मिध्यात्वका द्रव्य होता है वह भी पुरुषवेदके जघन्य सत्कर्मवाले जीवके मिध्यात्वके द्रव्यसे असंख्यातवें भागप्रमाण कम ही होता है। इस आचार्यके उपदेशानुसार गुणितकर्माशिक और क्षतिकर्माशिक जीवके अन्तिम निषेकसे लेकर नीचे एक समय अधिक बाधाकालके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिके प्रति विशेष हीन क्रमसे प्रदेशोंका अवस्थान पाया जाता है । शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान इसी सन्निकर्षसे जाना जाता है ? अनुलोम और विलोम प्रदेशरचनाके मध्य कौनसी प्रदेशरचना समीचीन है यह उत्तरोत्तर जिनवाणीके क्षीण होते जानेसे ज्ञात नहीं होता, इसलिए दोनों उपदेशोंका यहाँ पर संग्रह करना चाहिए । $ १०६. हास्यकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिध्यात्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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