SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ अयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पदेस विहत्तिओ मिच्छत० - बारसक ० - णवणोक० णियमा अज० असंखे ० भागब्भहि० । सम्मामि०-- अनंताणु ० चउक्क० नियमा अज० असंखे० गुणब्भ० । सम्मामि० जह० पदेसविहत्तिओ मिच्छत - बारसक० - णवणोक० णियमा अज० असंखे० भागन्भ० । ताणु ० चक्क० नियमा० अज० असंखेज्जगुणन्भहिया । O ० 9 १०४. अताणुकोध० जह० पदेसविहत्तिओ मिच्छत्त- बारसक० णवणोक णियमा अज० असंखेज्जभागब्भहिया सम्म० सम्मामि० णियमा अज० असंखे ० गुणभ० | माण- माया - लोभाणं णियमा तं तु विद्वाणपदिदा अनंतभागन्भहिया असंखे ० भाग०भ० वा । एवं माण - माया लोभाणं । अपच्चक्खाणकोध० जह० पदेसविहत्तिओ मिच्छत्त- सत्तणोक० जियमा अज० असंखे० भाग०भ० । सम्म०सम्मामि० - अनंताणु ० चउक्क० णियमा अज० असंखे० गुण भ० । एक्कारसक०-भयदुछ० नियमा तं तु विद्वाणपदिदा - अनंतभागन्भहिया असंखे ० भागब्भहिया वा । एवमेक्कारसक०-भय-दुगुंछाणं । सम्यक्त्वकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिध्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी नियम से अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो संख्यातगुणी अधिक होती है । सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । $ १०४ अन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी नियम से अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है | सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है और जघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है । यदि अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है तो वह दो स्थान पतित होती है - या तो अनन्तवें भाग अधिक होती है या असंख्यातवें भाग अधिक होती है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान, माया और लोभकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । प्रत्याख्यानावरण क्रोधकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मिथ्यात्व और सात नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यात गणी अधिक होती है । ग्यारह कषाय, भय और जुगुप्साकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है और अजघन्य प्रदेशविभक्ति भी होती है । यदि जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है तो वह दो स्थान पतित होती है - या तो अनन्तवें भाग अधिक होती है या असंख्यातवें भाग अधिक होती है। इसी प्रकार ग्यारह कषाय, भय और जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy