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________________ ६६ जयधवलासहिदे कसाथ पाहुडे [ पदेसविहसी ५ भाग भ० । सेसाणं पयडीणं णियमा अविहतिओ । एवं सत्तकसायाणं । कोधसंज० जह० पदेसविहतिओ माण- मायासंज० नियमा अज० असंखे० गुणन्म० । लोभसंज० णियमा अज० असंखे० भागब्भ० । सेसाणं पयडीणं णियमा अविहत्तिओ । माणसंज० जहण्णपदेस विहत्तिओ मायासंज० नियमा अज० असंखे ० गुण भ० । लोभसंजल० णियमा अज० असंखे ० भागब्भ० । मायासंज० जह० पदेसविहत्तिओ लोभसंज० णियमा ज० असंखेज्जगुण भहियो । सेसाणमविहत्तिओ । लोभसंज० जह० पदे०विह० एक्कारस० - तिण्णिवेद० णियमा अज० श्रसंखे० गुण भ० । छण्णोक० नियमा अज • असंखे० भागब्भ० । १०२. इत्थिवेद ० जह० पदे० विहत्तिश्रो तिणिसंज० - पुरिस० नियमा अज० असंखे ० गुण भ० । लोभसंज० छण्णोक० नियमा अज० असंखे ० भागन्भहियं । एवं पुंसयवेदस्स | पुरिसवेद० जह० पदेस० तिण्णिसंज० नियमा अज० असंखे०गुणभ० । लोभसंज० णियमा अज० असंखे० भागब्भ० । हस्स० जह० पदे०विहत्तिओ तिणिसंज० - पुरिसवेद० णियमा अज० असंखे ०गुणब्भहि० । लोभसंज० विभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सात कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । क्रोधसंज्वलनकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मानसंज्वलन और मायासंज्वलनकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । लोभसंज्वलनकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । वह शेष प्रकृतियों का नियमसे विभक्तिवाला होता है। मानसंज्वलनकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके मायासंज्वलनकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । लोभसंज्वलनकी नियम से अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है। मायासंज्वलनकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके लोभसंज्वलनकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । वह शेष प्रकृतियोंका अविभक्तिवाला होता है । लोभसंज्वलनकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके ग्यारह कषाय और तीन वेदोंकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । छह नोकषायोंकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । ६. १०२. स्त्रीवेदकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके तीन संज्वलन और पुरुषवेद की नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है। लोभ संज्वलन और छह नोकषायोंकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । इस प्रकार नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्षं जानना चाहिए । पुरुषवेदकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके तीन संज्वलनोंकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो श्रसंख्यातगुणी अधिक होती है। लोभसंज्वलनकी नियमसे जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातवें भाग अधिक होती है । हास्यकी जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवके तीन संज्वलन और पुरुषवेदकी नियमसे अजघन्य प्रदेशविभक्ति होती है जो असंख्यातगुणी अधिक होती है । १. अ १० प्रतौ 'अज० संखे० गुणग्भहियं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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