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मा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अंतरकालपरूवणा ५८. जहण्णए पयदं तं चेव अदृपदं। णवरि जहण्णमजहण्णं ति भाणिदव्वं । अट्टावीसं पयडीणं जहण्णपदेसविहत्तियाणं तिणि भंगा। अजहण्णपदेसविहतियारणं पि तिण्णि चेव भंगा। एवं सचणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसतिय-सव्वदेवा ति । मणुसअपज्ज० जहण्णाजहण्ण० अह भंगा । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि ति ।
एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो। ५६. संपहि एदेण अहियारेण सूचिदसेसाहियाराणमुच्चारणं भणिस्सामो । भागाभागो दुविहो-जहण्णओ उक्कस्सओ चेदि । उक्कस्से पयदं। दुविहो जिद्द सोअोघेण आदेसेण य । ओघेण छन्वीसं पयडीणमुक्क० पदेसविहत्तिया जीवा सव्वजीवाणं केव०१ अणंतभागो। अणुक० सव्वजीवाणं केव०१ अणंता भागा। सम्म०सम्मामि० उक्क० पदेसविहत्ति० सयजी० के० ? असंखेज्जदिभागी । अणुक्क. सव्वजी० के० १ असंखे०भागा । एवं तिरिक्खोघं ।
६५८. जघन्यका प्रकरण है वही अर्थपद है। इतनी विशेषता है कि उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टके स्थानमें जघन्य और अजघन्य कहना चाहिए। अट्ठाईस प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंके तीन भङ्ग होते हैं। अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंके भी तीन भङ्ग होते हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्यत्रिक और सब देवों में जानना चाहिए मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिकी अपेक्षा आठ आठ भङ्ग होते हैं। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ—पहले उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवोंकी अपेक्षा ओघसे और चारों गतियोंमें जहाँ जितने भङ्ग सम्भव हैं वे घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहाँ पर भी घटित कर लेने चाहिए। मात्र यहाँ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टके स्थानमें जघन्य और अजघन्य कहना चाहिए।
इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय समाप्त हुआ। $ ५६. अब इस अधिकारसे सूचित हुए शेष अधिकारोंकी उच्चारणाका कथन करते हैं। भागाभाग दो प्रकारका है जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है
ओघ और आदेश। ओघसे छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्त बहुभागप्रमाण हैं। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं। असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए।
विशेषार्थ-मोहनीयकी सत्तासे युक्त कुल जीव राशि अनन्तानन्त है । उसमेंसे ओघसे इक्कीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव अधिकसे अधिक असंख्यात हो सकते हैं। चार संज्वलन और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव अधिकसे अधिक संख्यात हो सकते हैं। शेष सब जीव अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले होते हैं, इसलिए यहाँ छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट
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