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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
६०. आदेसेण णेरइएस अट्ठावीसं पयडीणं उक्क० सव्वजी० के० १ असंखे० भागो । अणुक्क० असंखेज्जा भागा । एवं सव्वणिरय सव्वपंचिदियतिरिक्खमणुस ० - मणुस अपज्ज० देव भवणादि जाव अवराइदो ति वत्तव्वं । मणुसपज्ज०मणुस्सिणि- सव्वसिद्धेसु अहादीसं पयडीणमुक्क० पदे० सव्वजी० के० ९ संखे०भागो । अणुक - संखेज्जा भागा । एवं णेदव्वं जाव अनाहारि ति । जहण्णए उक्कस्तभंगो | णवरि जहण्णाजहणणं ति णाहारि ति ।
।
$ ६१. जहण्णए पयदं भाणिदव्वं । एवं दव्वं जाव
४०
एवं भागाभागो समत्तो ।
६२. परिमाणं दुविहं -- जहण्णमुक्कस्सं च । उक्कस्से पयदं । दुविहो णिद्द े सोओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० - वारसक० - अहणोक० उक्कस्तपदेस विहत्तिया प्रदेशविभक्तिवाले जीव अनन्त भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव अनन्त बहुभागप्रमाण कहे हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तावाले ही कुल जीव असंख्यात होते हैं । उनमें भी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले असंख्यातवें भागप्रमाण हो सकते हैं। शेष अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले होते हैं, इसलिए इन दोनों प्रकृतियोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले असंख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले असंख्यात बहुभागप्रमाण कहे हैं । सामान्य तिर्यञ्च अनन्तप्रमाण हैं, इसलिए इस मार्गणा में ओघ प्ररूपणा बन जाने से उनमें
के समान जानने की सूचना की है ।
६०. देशसे नारकियों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें कथन करना चाहिए । मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवों में अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव सब जीवों के कितने भागप्रमाण हैं ? संख्यातवें भागप्रमाण हैं । अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव बहुभागप्रमाण हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए ।
विशेषार्थ — यहां जिन मार्गणाओं की संख्या असंख्यात है उनमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव असंख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण बतलाये हैं। तथा जिन मार्गाका परिमाण संख्यात है उनमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव संख्यातवें भागप्रमाण और अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव संख्यात बहुभागप्रमाण बतलाये हैं। शेष कथन स्पष्ट ही है ।
$६१. जघन्यका प्रकरण है । जघन्यका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है। कि उत्कृष्ट और अनुत्कृष्टके स्थान में जघन्य और अजघन्य ऐसा कहना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए ।
इस प्रकार भागाभाग समाप्त हुआ ।
६२. परिमाण दो प्रकारका है— जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - और आदेश | ओघसे मिथ्यात्व बारह कषाय और आठ नोकषायोंकी
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