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Aarvasna
गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए अंतरकालपरूवणा पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं जह• पत्थि अंतरं । अज० जहण्णुक्क० एगस० ।
६५६. अणुदिसादि जाव सव्वदृसिद्धि ति अठ्ठावीसं पयडीणं जहण्णाजहण्ण. पत्थि अंतरं । णवरि हस्स-रदि-अरदि-सोगाणमाणदभंगो । एवं जाव अणाहारए त्ति णीदे अंतरं समत्तं होदि ।
___णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो-जहणणुक्कस्सभेदेहि । अपदं कादूण सव्वकम्माणं णेदव्वो ।
$ ५७. एदस्स मुत्तस्स देसामासियस्स उच्चारणाइरियवक्खाणे परूवेमो । णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो-जहण्णओ उक्कस्सओ चेदि । उक्कस्सए पयदं । तत्थ अपदं-अहावीसं पयडीणं जे उक्करसपदेसरस विहतिया ते अणुक्कस्सपदेसस्स अविहत्तिया । जे अणुक्कस्सपदेसस्स विहलिया ते उक्कस्सपदेसस्स अविहत्तिया। विहत्तिएहि पयदं, अविहत्तिएहि अव्यवहारो। एदेण उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है ।
विशेषार्थ --- सामान्य देवोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिके अन्तरकालको जिसप्रकार घटित करके बतला आये हैं उसी प्रकार यहां पर भी घटित कर लेना चाहिए।
६५६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य प्रदेश विभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। इतनी विशेषता है कि हास्य, रति, अरति और शोक प्रकृतिका भङ्ग आनत कल्पके समान है। इस प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जानेपर अन्तरफाल समाप्त होता है।
विशेषार्थ-मिथ्यात्व आदि कुछ प्रकृतियोंकी भवके अन्तिम समयमें और कुछकी भवके प्रथम समयमें जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल सम्भव नहीं होनेसे उसका निषेध किया है। मात्र हास्य आदि चार प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति पर्यायग्रहणके अन्तर्मुहूर्त बाद होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय प्राप्त होनेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है।
इस प्रकार अन्तरकाल समाप्त हुश्रा। 8 नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे भङ्गविचय दो प्रकारका है । सो इस विषयमें अर्थपद करके सब कर्मोंका ले जाना चाहिए।
$ ५७. यह सूत्र देशामर्षक है। इसके उच्चारणाचार्य कृत व्याख्यानका कथन करते हैंनाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसमें यह अर्थपद है-जो अट्ठाईस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव हैं वे उनकी अनुत्कृष्ट प्रदेश अविभक्तियाले हैं। तथा जो अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव हैं वे उत्कृष्ट प्रदेश अविभक्तिवाले हैं। यहां विभक्तिवाले जीवोंका प्रकरण है, क्योंकि अविभक्तिवालोंका व्यवहार नहीं
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