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________________ ३४ - ---Mrrore عرعر عرعر عرعر جی جی کے حمی محرعر عرعر عرعر عرعر عرعر عرعر عرعر عرعر عرعر जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ५२. तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु मिच्छ०-बारसक०--इत्थि -णस०--भयदुगुंछाणं जहण्णाजहण्ण गत्थि अंतरं । सम्म० सम्मामि० ओघं । अणंताणु चउक्क० जह० णत्थि अंतरं। अज० ज० अंतोमु०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसणाणि । पंचणोक० जह० गत्थि अंतरं । अज० जहण्णुक्क० एगस० । एवं पंचिंदियतिरिक्खतियस्स । णवरि सम्म०-सम्मामि० जह० णत्थि अंतरं । अज० जह० एगस०, उक्क० सगहिदी देसणा। पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि०-सोलसक०. भय-दुगुंछा० जहण्णाजहण्ण० पत्थि अंतरं । सत्तणोक० जह० णत्थि अंतरं। अज० जहण्णुक्क० एगस०। निकलनेके अन्तिम समयमें और शेष की नरकमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशबिभक्तिके अन्तर कालका निषेध किया है। तथा शेष पाँच नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका स्वामी सामान्य नारकियों के समान है, इसलिए यहाँ इनकी अजघन्य प्रदेश विभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय सम्भव होनेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है। ५२. तिर्थञ्चगतिमें तिर्थश्चोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, स्त्रीवेद, नपुसकवेद, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेश विभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। पाँच नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। इसी प्रकार पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें सम्यक्त्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेश विभक्तिका अन्तरकाल नहीं है । अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। पञ्च न्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है । सात नोकषायोंकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय है।। विशेषार्थ .. तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्स तीन पल्यकी आयुके अन्तिम समयमें सम्भव है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसत्कर्म तिर्यञ्च पर्याय ग्रहण करनेके प्रथम समयमें सम्भव है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिके अन्तरकालका निषेध किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग ओघके समान यहाँ भी घटित हो जाता है, इसलिए इनका भङ्ग अोधके समान जाननेकी सूचना की है। अनन्तानुवन्धीचतुष्क विसंयोजना प्रकृतियाँ हैं। इनका सत्त्व कमसे कम अन्तर्मुहूर्त कालतक और अधिकसे अधिक कुछ कम तीन पल्य काल तक न रहे यह सम्भव है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य कहा है। पाँच नोकषायोंकी जघन्य प्रदेश विभक्ति तियञ्चों में उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहर्त बाद प्रतिपक्ष प्रक्रतियों के बन्धके अन्तिम समयमें होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेश विभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल एक समय कहा है। पञ्चन्द्रियतियञ्चत्रिको यह अन्तरकाल इसी प्रकार बन जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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