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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५
जहणेण
३८. गुणिदकम्मंसियस्स अगुणिदकम्मसियभावसुवणमिय उक्कस्सेण वि अनंतेण कालेन विणा पुणो गुणिदभावेण परिणमणसत्तीए अभावादो । जहणेण असंखेज्जा लोगा ति अंतरं किष्ण परुविदं ? ण, तस्सुवदेसस्स वाइजमाणताणाव तदपरूवणादो |
* एवं सेसाणं कम्माणं ऐदव्वं ।
३६. एदस्त सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा - अढकसाय-अदृणोकसायाणं मिच्छत्तभंगो | अनंताणु ० चउक्क० उक्क० पदे० मिच्छतभंगो ।
* एवरि सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं पुरिस वेद-चदुसंजलणाणं च उक्कसपदेसविहत्तिअंतरं णत्थि ।
४०. कुदो १ खवगसेढीए समुप्पण्णत्तादो | एवमुकस्सपदेसविहत्ति अंतरं समत्तं ।
३८. क्योंकि जो गुणितकर्माशिक जीव अगुणितकर्माशिकभावको प्राप्त होता है उसके जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार अनन्त कालके बिना पुनः गुणितकर्माशिकरूपसे परिणमन करने की शक्ति नहीं पाई जाती ।
शंका- गुणितकर्माशिक जीवका जघन्य अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण क्यों नहीं कहा ? समाधान -- नहीं, क्योंकि वह उपदेश अपवाइजमाए है इस बातका ज्ञान करानेके लिए वह नहीं कहा।
विशेषार्थ - पहले काल प्ररूपणा के समय चूर्णिसूत्र में अन्य उपदेश के अनुसार मिध्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मका जघन्य काल असंख्यात लोकप्रमाण कह आये हैं, इसलिए यहाँ यह शंका की गई है कि उसी उपदेशके अनुसार मिथ्यात्व के उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मका जघन्य काल असंख्यात लोकप्रमाण भी कहना चाहिए था । वीरसेन स्वामीने इस शंकाका जो समाधान किया है उसका भाव यह है कि वह उपदेश अप्रवर्तमान है यह दिखलाना आवश्यक था, इसलिए चूर्णि - सूत्रकारने यहाँ उसका निर्देश नहीं किया है ।
* इसी प्रकार शेष कर्मो का अन्तरकाल जानना चाहिए ।
६ ३६. अब इस सूत्र का अर्थ कहते हैं- -आठ कषाय और आठ नोकषायोंका भङ्ग मिथ्यात्व के समान है । अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका भङ्ग मिध्यात्वके समान है । विशेषार्थ - यहाँ पर अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी आठ कषाय और आठ नोकषायों के साथ परिगणना न करके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका भङ्ग मिध्यात्वके समान हैं ऐसा कहा है सो उसका कारण यह है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके अन्तरकालमें मिथ्यात्वसे कुछ अन्तर है यह दिखलाना आवश्यक था, इसलिए वीरसेन स्वामीने उसका अलग से निर्देश किया है।
* इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व पुरुषवेद और चार संज्वलनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है ।
६४०. क्योंकि इनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति क्षपकश्रेणिमें उत्पन्न होती है । इस प्रकार उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल समाप्त हुआ ।
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