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________________ ४४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ॐ बारसकसायाणं णिसेयहिदिपत्तयमुदयहिदिपत्तयं च जहएणयं rrrrrrra ६ ७२३. सुगम । ® जो उपसंतकसाओ सो मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स जहणणयं णिसेयहिदिपत्तयमुदयहिदिपत्तयं च । ६ ७२४. एदस्स मुत्तस्सत्थो उदयादो जहण्णझीणहिदियसामित्तसुत्तस्सेव वक्खाणेयव्यो। गवरि एत्थ पढमसमयसामित्तविहाणं साहिप्पाओ मिच्छत्तस्सेव वत्तवो। * अधाणिसेयहिदिपत्तयं जहएणयं कस्स । ६ ७२५. सुगमं । * अभवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णएण कम्मेण तसेसु उववरणो । तत्थ तप्पाओग्गुक्कस्सहिदि बंधमाणस्स जद्देही आवाहा तावदिमसमए तस्स जहएणयमधाणिसेयहिदिपत्तयं । अइक्कते काले कम्महिदिअंतो सई पि तसो ण आसी। पर भी लागू होती है। इससे यह लाभ होता है कि जब यह जीव अनन्तानुबन्धीसे संयुक्त होता है तब अन्य कषायोंका कम द्रव्य अनन्तानुबन्धीरूपसे संक्रमित होता है । शेष कथन सुगम है । * बारह कषायोंके निषेकस्थितिमाप्त और उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका जघन्य स्वामी कौन है। ६७२३. यह सूत्र सुगम है ? * जो उपशान्तकषाय जीव मरकर देव हुआ है वह प्रथम समयवर्ती देव निषेकस्थितिप्राप्त और उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका जघन्य स्वामी है। ७२४. जिस प्रकार उदयसे झीनस्थितिविषयक स्वामित्व सूत्रके अर्थका व्याख्यान किया है उसी प्रकार इस सूत्रके अर्थ का व्याख्यान करना चाहिये। किन्तु यहाँ जो प्रथम समयमें स्वामित्वका विधान किया है सो मिथ्यात्वके समान इसका अभिप्राय सहित व्याख्यान करना चाहिये। * यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका जघन्य स्वामी कौन है ? ६७२५. यह सूत्र सुगम है। * अभव्योंके योग्य जघन्य सत्कर्मके साथ जो त्रसोंमें उत्पन्न हुआ है। किन्तु इसके पूर्व कर्मस्थितिप्रमाण कालके भीतर जो एक बार भी त्रस नहीं हुआ है। फिर वहाँ तत्यायोग्य उत्कृष्ट स्थितिको वाँधते हुए जितनी आबाधा होती है उसके अन्तिम समयमें वह यथानिषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका जघन्य स्वामी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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