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४०४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[पदेसविहत्ती ५ ताणमुवरि दसणमोहक्खवयगुणसेढिसीसयं पक्खिविय कदकरणिजअधापवत्तसंजदभावेणंतोमुहुत्तं गुणसेढीओ श्रावूरिय से काले तिण्हं पि गुणसेढिसीसयाणमुदी होहदि त्ति कालं करिय देवेमुप्पण्णपढमसमयअसंजदम्मि सत्थाणम्मि चेव वा परिणामपच्चएणासंजमं गदपढमसमयम्मि सामित्तविहाणं पडि दोण्हं विसैसाणुवलंभादो ।
$ ६६४. एवमहकसायाणमुदयहिदिपत्तयस्स उकस्ससामित्तविसेसं सूचिय संपहि छण्णोकसायाणं पयदुक्कस्ससामित्तविसेसपरूवणहमुत्तरोपकमो
* छएणोकसायाणमुक्कस्सयमुदयहिपत्तयं कस्स ? 5 ६६५. सुगममेदमासंकासुतं । * चरिमसमयअपुव्वकरणे वठ्माणयस्स।
६६६६. एत्थ गुणिदकम्मंसियस्स खवयस्से त्ति वक्सेसो, अण्णहा उक्कस्सभावाणुववत्तीदो । सेसं सुगमं । एत्थेवांतरविसेसपरूवणहमुत्तरमुत्ताणमवयारो
हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं जद कीरइ भय-दुगुंछापमवेदो कायव्यो । फिर भी उनके ऊपर दर्शनमोहनीयकी क्षपणासम्बन्धी गुणश्रेणिशीर्षको प्रक्षिप्त करके फिर कृतकृत्य
और अधःप्रवृत्तसंयमरूप भावके द्वारा अन्तर्मुहूर्त कालतक गुणश्रेणियोंको पूरण करके तदनन्तर समयमें तीनों ही गुणश्रेणिशीर्षों का उदय होगा पर ऐसा न होकर पूर्व समयमें ही मरकर देवोंमें उत्पन्न हुआ उस असंयत देवके वहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट स्वामित्व होता है। या स्वस्थानमें ही परिणामोंके निमित्तसे असंयमको प्राप्त होने पर उसके प्रथम समयमें ही उत्कृष्ट स्वामित्व होता है। इस प्रकार स्वामित्वकी अपेक्षा इन दोनोंमें कोई भेद नहीं है।
विशेषार्थ-अप्रत्याख्यानवरण और प्रत्याख्यानावरण इन आठ कषायोंके उदयस्थितिप्राप्त उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी कौन है इसका प्रकृतमें विचार किया है सो यह पूरा वर्णन इन्हीं आठ कषायोंके उदयसे झीनस्थितिप्राप्त द्रव्यके उत्कृष्ट स्वामित्वसे मिलता जुलता है, इसलिये उसके समान इसका विस्तार समझ लेना चाहिये।
६६६४. इसप्रकार आठ कषायोंके उदयस्थितिप्राप्तके उत्कृष्ट स्वामित्वविशेषको सूचित करके अब छह नोकषायोंके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वविशेषका कथन करनेके लिये आगेके सूत्र कहते हैं
* छह नोकषायोंके उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी कौन है ? ६६६५. यह आशंका सूत्र सुगम है।
* जो अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें विद्यमान है वह छह नोकषायोंके उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी है ।
६६६६. यहाँ अपूर्वकरण गुणस्थानवाला जीव गुणितकमांश क्षपक होता है अतः सूत्र में 'गुणिदकम्मंसियस्स खवयस्स' इतना वाक्य शेष है जो जोड़ लेना चाहिये, अन्यथा उत्कृष्ट भावकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। शेष कथन सुगम है। अब इस विषयमें अवान्तर विशेषका कथन करनेके लिये आगेके सूत्र आये हैं
* हास्य, रति, अरति और शोकका यदि उत्कृष्ट स्वामित्व करता है तो उसे भय और जुगुप्साका अवेदक करना चाहिए।
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